सदियों से रहा है उपेक्षा का शिकार भारतीय पत्रकार
सदियों से रहा है उपेक्षा का शिकार भारतीय पत्रकार! स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक! कोरोना महामारी की भीषण त्रासदी हो या फिर शाहीन बाग का आंदोलन हो साथ ही चुनाव हों या प्राकृतिक आपदाओं से जूझता देश हो हर पल हर संकट की घड़ी में ऐक हनुमान की तरह कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले पत्रकार को बदले सदैव तिरस्कार व उपेक्षा के शिवा कुछ भी नहीं मिला, यदि मिली है तो यदा कदा फर्जी मुकदमों की सौगाते प्राण घातक हमले जिस पर सरकारों समाज सेवियों की शांत्वनायें भी मिलीं आज देश महा भयानक संकट के दौर से गुजर रहा है ऐसी विषम परिस्थितियों में भी अन्याय अत्याचार से पीड़ित बेबस लाचार लोगों की व्यथा अपनी लेखनी व्दारा कश्मीर से कन्याकुमारी तक निष्पक्ष निस्वार्थ अवैतनिक होकर पहुंचाने का कार्य ऐक पत्रकार ही कर सकता है भाई मोटी सैलरी लेकर भी जनता का दोहन व शोषण करने वाले यदि दो रोटियां देकर फोटो खिंचवाने का काम करते हैं तो तारीफों के पुल बाँधने वालों की लम्बी कतार लग जाती है परन्तु आज अपनी जोखिम में डाल कर देश की करूण कथाएं लिखने वाले पत्रकार के लिए किसी विधायक सांसद या समाज सेवी ने सोचा कि आखिर अवैतनिक अभिकर्ताओं पत्रकारों का अपना स्वयं का अस्तित्व इस संकट के दौर में कहीं खतरे में तो नहीं है? नहीं सोचा ना बस यही हमारे देश की विडंबना है दुर्भाग्य है इस पर विचार करना वर्तमान भयावह सच का सामना करने से कम साबित नहीं होगा क्यों कि 50 वर्षो पूर्व की परिस्थितियां कुछ और थीं जब हमारे संविधान की रचना हुई लेकिन वर्तमान की परिस्थितियां बदलने के साथ साथ नियम कानूनों व हमारे व्यवहार में भी परिवर्तन स्वाभाविक है! बात जो सच के करीब होती है वह कड़वी तो होती ही है परन्तु वह सच जिसे नकारा नहीं जा सकता वही है पत्रकारिता की सच्चाई मेरे लिखने का आशय सिर्फ व्यवस्था से रूबरू होना ही नहीं वल्कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए इंगित करना है संसार का नियम है समय व परिस्थितियों के आधार पर परिवर्तन सुनिश्चित होता है जो कि मानव के कल्याण में सहायक है!
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