प्राचीनता हमारी धरोहर है तो नवीनता उपलब्धि! डॉ महेंद्र राणा (समाज सेवी)! हरीद्वार!
स. संपादक शिवाकांत पाठक!
डॉ महेंद्र सिंह राणा समाज सेवी (भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड सदस्य ) ने उत्तराखंड वासियों व देश वासियों को नूतन वर्ष की मधुर बेला पर हार्दिक शुभकामनाएं प्रदान करते हुए कहा कि आप सभी लोग सपरिवार सकुशल स्वस्थ रहें प्रकृति के सदैव साथ रहें आयुर्वेद प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति है जिसे अपनाना स्वस्थ जीवन की कल्पना को साकार रूप देना साबित होगा , यही हमारी कामना है की हमारे देश हर हर व्यक्ति स्वस्थ रहे प्रसन्न रहे आज इस सुख की घड़ी में खोए हुए वे पल भुलाए नहीं जा सकते जिस भयावह समय के आगोश में हमारे देश प्रदेश जिले के तमाम लोग समा गए उस दुखद पल को भी भूलना उचित नहीं होगा उन्होंने कहा कि
हम भूल गए उन सच्चे वीरों को जिन्होंने प्रथक उत्तराखंड की मांग को लेकर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए पुलिस की बेरहमी को सहा आज हम उनकी उस शहादत को भुला कर मतलब परस्त लोगों के निजी स्वार्थ सिद्ध होने के लिए उनके साथ हैं अपने उत्तराखंड के लिए नहीं ,,,आज भू कानून की हम मांग कर रहे हैं जब कि हमको अपने ही प्रदेश में यह मांग करना एक शर्म की बात है , जब हमारे ही मंत्री, विधायक, सांसद, मुख्य मंत्री सभी है तो उनको भी तो सोचना चाहिए सोचिए,
उत्तराखंड प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से अति संवेदनशील राज्य है। राज्य गठन के 21 वर्षों में आपदाओं ने भी राजनीति को धार दी। जब-जब राज्य पर आपदाओं ने कहर बरपाया, राजनीतिक दलों ने इसे एक-दूसरे पर निशाना साधने के लिए हथियार बनाया। लेकिन, राज्य के लिए नासूर बन चुकी इन आपदाओं के जख्मों का मरहम तलाशने के लिए कभी भी किसी राजनीतिक दल ने चुनावी मुद्दा नहीं बनाया।
प्राकृतिक आपदाएं हमें हर साल नए जख्म देती हैं
प्रकृति के प्रकोप से जुड़ीं यह सब बातें राजनीतिक दलों के जेहन में हैं, लेकिन वह इनसे निपटने की नीतियों को अपने घोषणापत्र में शामिल नहीं करती हैं। प्राकृतिक आपदाएं हमें हर साल नए जख्म देती हैं। हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान होता है। हजारों लोग प्रभावित होते हैं और सैकड़ों लोगों की मौत हो जाती है। आज भी सैकड़ों गांव संवेदनशील और अति संवेदनशील श्रेणी में हैं। चार सौ से अधिक परिवारों का विस्थापन किया जाना है। हर साल सड़कें, पुल, बिजली की लाइनें, पानी की लाइनें बह जाती हैं या मलबे में दब जाती हैं। सैकड़ों गांवों का जिला मुख्यालय से कई-कई दिनों तक संपर्क कट जाता है। एक आपदा आती है, अभी हम उससे हुए नुकसान की भरपाई तो दूर उसका ठीक से आकलन भी नहीं कर पाते, तब तक दूसरी आपदा आ जाती है। यह सिलसिला लगातार चला आ रहा है।
आपदा में अब तक हुए नुकसान का जायजा
- वर्ष 2001 : फाटा और ब्यूंग गाड़ भूस्खलन में 21 लोग मारे गए।
- वर्ष 2002 : बूढ़ाकेदार भू-स्खलन में 28 व्यक्तियों की मौत हुई।
- वर्ष 2003 : 18 अगस्त को भारत-नेपाल सीमा पर काली घाटी में भू-स्खलन के कारण 250 से अधिक की मौत। कैलाश मानसरोवर यात्रा के 12वें दल के अधिकांश सदस्यों की मृत्यु हुई, प्रसिद्ध नृत्यांगना प्रोतिमा बेदी मरने वालों में शामिल थीं।
- वर्ष 2005 : गोविंदघाट भू-स्खलन में 11 लोग मारे गए थे।
- वर्ष 2008: 17 जुलाई को पिथौरागढ़ में थल से दिल्ली जा रही बस में चंपावत जनपद में सूखीढांग के निकट आमरू बैंड (राष्ट्रीय राजमार्ग 125) पर भू-स्खलन से 17 लोगों की मौत हुई थी।
- वर्ष 2009 : पिथौरागढ़ की मुनस्यारी तहसील में ला-झेकला, चाचना व रूमीडाला में हुए भू-स्खलन के कारण 43 व्यक्तियों की मृत्यु हुई।
- वर्ष 2010 : में अल्मोड़ा शहर के नजदीक स्थित बाल्टा व देवली में भू-स्खलन के कारण 36 व्यक्तियों की मौत।
- वर्ष 2010 : बागेश्वर की कपकोट तहसील के अंतर्गत सुमगढ़ में प्राथमिक के भू-स्खलन के चपेट में आने से 18 विद्यार्थियों की मृत्यु।
- वर्ष 2010 : भूस्खलन के कारण रुद्रप्रयाग जनपद के किमाणा और गिरिया में 69 व्यक्तियों की मृत्यु।
- वर्ष 2012 : उत्तरकाशी जनपद में असीगंगा में भू-स्खलन के कारण रुके पानी के रिसाव से आई बाढ़ में 32 व्यक्तियों की मृत्यु।
- वर्ष 2013 : केदारनाथ सहित मंदाकिनी घाटी के कई शहरों व गांवों में भारी विनाश से आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक चार हजार से अधिक व्यक्ति मारे गए या लापता हुए थे, 14 व 15 अगस्त को पौड़ी गढ़वाल की यमकेश्वर तहसील के विभिन्न स्थानों पर भारी वर्षा के साथ हुए भूस्खलन में 14 व्यक्तियों की मृत्यु हुई थी।
- वर्ष 2016 : जनपद देहरादून में त्यूनी में हुए भू-स्खलन से 10 व्यक्तियों की मृत्यु हुई थी, पिथौरागढ़ जनपद की मुनस्यारी व बेरीनाग तहसीलों में बस्तड़ी, नौला रिंगोलिया, चर्मा व नाचनी में हुए भू-स्खलन के कारण 25 व्यक्तियों को मृत्यु हुई थी।
- वर्ष 2021 फरवरी में चमोली जिले में ग्लेश्यिर टूटने से धौलीगंगा-ऋषिगंगा में आई बाढ़ में दो सौ से अधिक लोगों की मौत हुई थी, ऋषिगंगा प्रोजेक्ट को बड़ा नुकसान हुआ था।
- वर्ष 2021 मानसून सीजन के खत्म होने के बाद अक्तूबर माह में तीन दिन भारी बारिश के बाद कुमाऊं में 80 के करीब लोग मारे गए थे।
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