क्या आप जानते हैं क्या है स्वर्णप्राशन संस्कार ! डॉ महेंद्र राणा (सदस्य भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड)





स. संपादक शिवाकांत पाठक!





स्वर्ण प्राशन संस्कार का उल्लेख कश्यप व सुश्रुत संहिताओं में भी वर्णित है । यह प्राचीन समय से ही आयुर्वेद इम्यूनाइजेशन का कार्य कर रहा है । पुरोन समय माता - पिता अपने बच्चों के जन्म के बाद जीभ पर चांदी या सोने की सिलाई से ' ऊं लिखते थे । लेकिन अब यह संस्कार विलुप्त हो गया है । इसके उपयोग से बच्चों की शारीरिक , बौद्धिक क्षमता विकास के साथ - साथ रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है । जिसका मुख्य घटक स्वर्ण भस्म है । इसके साथ ही गौघृत , शहद ब्राह्मी , शंखपुष्पी , मंडूकपर्णी , योतिषमति , गिलोय , वच आदि औषधियों से निर्मित किया जाता है । स्वर्ण प्राशन हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक है । स्वर्ण प्राशन कैसे और कब देना है ...स्वर्ण प्राशन को पुष्य नक्षत्र वाले दिन 0 से 16 वर्ष तक के ब'चों को कराया जाता है पुष्य नक्षत्र वाले दिन स्वर्ण की औषधीय शक्ति सर्वाधिक होने से विशेष रूप से लाभकारी होती है । पुष्य नक्षत्र पर पिलाने से इस ड्रॉप के विशेष चमत्कार देखने को मिलते हैं । क्योंकि इस दिन ग्रहों की शक्तियां ज्यादा होती है ।




 पुष्य नक्षत्र हर महीने में एक बार आता है , इसलिए पुष्य नक्षत्र पर अच्छे परिणाम के लिए कम से कम छह बार यह ड्रॉप पिलानी चाहिए । स्वर्ण प्राशन के लाभकोरोना की तीसरी लहर से बचने के लिए ब'चों को स्वर्ण प्राशन ड्राप बहुत ही फायदेमंद है आयुर्वेद का उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा की जाए , ताकि रोग ही ना हो । स्वर्ण प्राशन भी इसी कड़ी में कार्य करने वाली उत्तम औषधि है । - यह बच्चों की रोग प्रतिरोधक शक्ति एवं बुद्धि तथा सर्वांगीण विकास करता है । बच्चों के पाचन तंत्र की क्रिया को सम्यक करता है , जिससे भूख बढ़ती है । बच्चों की मेधा , बुद्धि , स्मृति , एकाग्रचित्तता का विकास होता है इसके सेवन से ब'चों को सर्दी , जुकाम , मौसमी बीमारियों से बचने में सहायक है ।


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