शुभ प्रभात मित्रों,,,,
भावनाओं से खेलने वाले लोग अंत में विश्वास के लायक नहीं रहते,,,
पीड़ाएं अक्सर मौन धारण कर लेती हैं और एंड में पत्थर में बदल जाती हैं ,,
रोती हुईं आंखे कभी झूठ नहीं बोलती क्यों कि आसूं तभी आतें हैं जब पीड़ा असहनीय होती है ,,,
तू स्वेत पत्र सा स्वेत प्रिए मैं तो दवात की स्याही हूं,,
मैं ग्रीम्स काल की लू जैसा भीनी सी एक पुरवाई हूं,,
किसकी तलास है एकांत की,,? या फिर एकांत के उस पार उभरते मधुर कोलाहल की,,
परंतु कोलाहल तो आर्तनांद की होता है,, कहीं ये उसकी आहट तो नहीं,,,,?
ह्रदय के प्रांगण में हिचकोले खाता मन एक असीम दुविधा लिए,,,,,, अंतत: चाहता क्या है,,,,?
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