जो विषम परिस्थितियों में भी होंठो पर मंद मंद मुस्कान बिखेरते हैं वे हैं श्री कृष्ण।
स.संपादक शिवाकांत पाठक।
सुना है श्री कृष्ण जी वृंदावन में रहश रचाते थे आज भी निधि वन में रचाते हैं,, ये रास लीला क्या है,, ये रास लीला ही प्रेम का प्रतीक है वास्तविक प्रेम,,, जो किया नहीं जाता,,, जेसे नींद लाई नहीं जाती भूख लगाई नहीं जाती,, दर्द लाया नहीं जाता ये सब होता है,, किया नहीं जाता,,,
जो प्रेम को जानते ही नहीं हैं वे कहें कि हम तो प्रेम करतें हैं इस बात को कैसे मान लिया जाएगा,, कोइ व्यक्ति खेती नहीं कर पाता जानता ही नहीं है तो कैसे करेगा,, नहीं ना,,, तो फिर लोग कहते कैसे हैं कि मैं उससे प्रेम करता हूं फलाने से ढिकाने से,,, झूठ बोलते हैं वे,,, उनके प्रेम के पीछे एक स्वार्थ छिपा होता है जो कि शरीर तक सीमित दायरे में रहकर प्रेम को ढाल बनाते हैं,, जब उनकी वासनाएं शारीरिक इक्षाएं पूर्ण हो जाती है तब उनका प्रेम किसी नए शरीर की तलास करता,, यह है आज के वर्तमान समय का सत्य और तो कड़ुआ होता ही है,, कौरव पांडव का युद्ध समाप्त होने पर श्री कृष्ण के कुशल नेतृत्व में पांडवो की विजय हुई हालांकि संख्या में बहुत कम होने पर भी पांडव जीत गए सभी लोग प्रसन्न थे श्री कृष्ण के होंठो पर मंद मंद मुस्कान थी,, सभी लोंगो ने नाना प्रकार की वस्तुएं कृष्ण से वरदान में मांगी लेकिन कुंती एक दम शांत भाव से निर्विकार होकर बैठी सिर्फ़ कृष्ण को एक टक निहारे जा रही,,,
श्री कृष्ण,,,,, अरे कुंती तुम किन खयालों में गुम हो गई,, तुमने तो कुछ भी नहीं मांगा जब कि सभी ने बहुत कुछ मांगा मुझसे और मैने दिया भी,,
कुंती,,, माधव तुम को सामने देख कर कोइ भी इक्षा ही नहीं रहती,, कामनाओं का नाश हो जाता तो क्या मांगू,,,?
श्री कृष्ण,,, रहस्य मई मुस्कान बिखेरते हुए कहते हैं नहीं कुंती मेरे समक्ष उपस्थित होने वाले को कुछ ना कुछ मांगना होता है,, मांगो आज तुम जो भी मगोगी मैं दूंगा,,,
कुंती कहती है मेरे माधव यादि तुम वास्तव में मुझे कुछ देना ही चाहते हो तो मुझे वरदान दो कि मुझे आगे आने वाले जीवन में सिर्फ़ कष्ट और दुख मिलें,,,
श्री कृष्ण आश्चर्य ने कुंती को अपलक निहारते हैं,, आवाक रह जाते हैं,,
कुछ क्षणों बाद कृष्ण कहते हैं कुंती तुम यह क्या माँग रहीं हो आज तक एसा किसी ने भी नहीं मांगा,,, और तुम दुख क्यों मांग रही हो,,,
कुंती निष्क्षल भाव से जवाब देती है,, सुनो कृष्ण मैं दुख क्यों मांग रही हूं,,
मैने जब जब दुखों में तुमको पुकारा तब तब तुमने उसी क्षण आकर मुझे दर्शन दिए और मेरे कष्ट को दूर किया,, सच तो यही है कृष्ण कि मैं सुखों में तुम्हे याद नहीं कर पाई और तुम नहीं आए इसलिए मुझे देना चाहते हो तो असहनीय वेदना और दुख देदो ताकी तुम्हे देखने का अवसर मिलता रहे,,,,
अब तो कृष्ण ठहाके लगा कर हंस पड़े,, बहुत दिल को छू लेने वाली बात कुंती ने कह डाली थी,, कृष्ण फिर शांत भाव से बोले कुंती आज मैं तुम्हारे निस्वार्थ प्रेम से बहुत प्रभावित होकर तुम्हे वरदान देता हूं कि तुम्हे कभी भी कष्ट छू नहीं सकता और तुम को मैं हर पल याद रहूंगा जब तुम चाहोगी तुम्हारे सामने आ जाऊंगा,,
यह है प्रेम की सच्ची परिभाषा यही है प्रेम जिसमे कि शरीर से नहीं अपितु भावनात्मक रूप से आत्मा का आत्मा से मिलन होता है,,,,
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