एक बार जरूर पढ़े, असभ्यता का अद्भुत उदाहरण बन गए हैं आप और हम ! स. संपादक शिवाकांत पाठक!

 



भारत को आजाद हुए हुए करीब 75 वर्ष पूरे हो चुके हैं !अब एक बार 75 वर्ष पहले जाकर अपनी सभ्यता ,संस्कृति, विनम्रता , भाईचारा आदि के बारे में सोचो ?? बड़े भाई से भी कितना डर लगता था माता पिता जी की आंखो से डर लगता था हम सभी से बड़ी नम्रता के साथ व्यवहार करते थे  हमारे अंदर छल कपट झूठ फरेब नहीं था और अब सच बताओ हालात क्या हो चुके हैं पहले हमारे घर आने वाले महमान को हम सौभाग्य समझते थे और अब सोच कर देखो इंसान इंसान को ही देखना पसंद नहीं करता रही बात सभ्यता की तो आज  हम पूरी तरह से जानवर से भी बदतर हो चुके हैं ,याद आया  अभी हाल की ही बात है कि अपने आप को डॉक्टर कहलाने वाला व्यक्ति अपने से ज्यादा उम्र के व्यक्ति से कह रहा था तू जाकर स्कूल में बात तो कर तुझे कई बार बुलाया गया तू जाता ही नहीं है अब आप सोचिए कि इस भाषा का प्रयोग कहां तक भारतीय संस्कृति से मेल खाता है  उसकी बात सुनकर बड़ा ही अजीब लगा कि आज हमारा भारत वास्तव में शिष्टाचार को तिलांजलि दे चुका है रिकार्डिंग के अनुसार तो सिद्घ होता है कि  भले ही खुद को डॉक्टर कहता हो लेकिन उसके इंसान होने में भी संदेह है है या नहीं आप खुद सोच कर देखो ? दिखावटी देश भक्ति की आड़ में जनता का खून चूसने वाले लोग वास्तव हमारे देश के लिए कलंक साबित हो रहे हैं मेरा लिखने का उद्देश्य यह है कि नवोदय नगर में ड्रग्स इंस्पेक्टर द्वारा सभी प्राइवेट चिकित्सको के बोर्ड व स्टॉक की गई दवाएं एक बार चेक की जाए ताकि अंजान भोली जनता के खून पसीने की कमाई का पैसा खाने वाले लोगों के खून में समाई अमानवीयता दूर हो सके ! क्यों कि बड़े बड़े पढ़े लिखे विद्वान लोगों द्वारा जब गलत ढंग से पैसा कमाया जाता है तो अर्जित धन से  प्राप्त भोजन से निर्मित रक्त का प्रभाव उसके अंदर हैवानियत अमानवीयता , असभ्यता का निर्माण कार्य प्रारंभ करता है सच तो सच होता है उसे ठुकराओ

या मानो लेकिन सत्य कभी विचिलित नहीं होता व सच कभी समाप्त भी नहीं किया जा सकता !





भीष्म पितामह तीरों की शरसैया पर पड़े मृत्यु की घड़ी का इंतजार कर रहे थे  तभी सभी पांडव जाकर मिले भीष्म पितामह उन्हें ज्ञान व न्याय अन्याय की बाते बताने  लगे ,लेकिन द्रोपदी ने कहा कि पितामह जब भारी सभा में मेरी साड़ी उतारी जा रही थी तब आपका ज्ञान कहां गया था ? सवाल वास्तव में बेहद महत्वपूर्ण था लेकिन भीष्म पितामह ने कहा कि उस समय मेरे शरीर में कौरवों द्वारा अन्याय अत्याचार से कमाए गए धन से भोजन जा रहा था इसलिए मेरी बुद्धि कुंठित हो चुकी थी अब अर्जुन के द्वारा छोड़े गए तीरों से वह रक्त बह गया है इसलिए अब मैं न्याय अन्याय के बारे में सोच सकता हूं !

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