जब शिव खिलखिलाकर हंस पड़े माँ गंगा के प्रश्न पर,,!

 


स संपादक शिवाकांत पाठक,,



संसार की रचना ही माया और ब्रम्ह से हुईं है,, जैसे एक सिक्के के दो पहलू,, एक ओर सन दूसरी तरफ मख्खी,, मतलब हम एक को बल और दूसरी को शक्ति कह सकते है, बस यहीं से आरम्भ होता है, नर, नारी, सुख, दुख, हानि, लाभ, सभी कुछ इसी क्रम में है,, वो चीटी, या हाथी,, सभी के ऊपर लागू है,,,इसी तरह ब्रम्हांड की सम्पूर्ण रचना है,, समस्त देवीयां, नारिया एक ही प्रकृति की होंगीं,, लेकिन पुरुषो में भिन्नता होगी,, क्यों कि ब्रम्ह,, सम्पूर्ण सृस्टि का संचालन करता है,,गौर से पढ़िए,,, एक बार का संवाद,, माँ गंगा और शिव के साथ,,


गंगा अपने मन को अक्सर समझ नही पाती, यह क्यों, कब, कैसे कहां, क्या रिएक्ट करता है और सच में उसका स्वयं का मन चाहता क्या है ? 


वह उस दिन उनसे पूछने कुछ और ही गयी थी पर उनसे उस लम्हें उसने पूछा कि, शिव, मनुष्य कौन है ??? ( आगे स्वयं गंगा के शब्दों में )


शिव मेरे प्रश्न पर भी मौन रहे, परंतु कुछ देर बाद मुझे बड़े गौर से देखकर बोले--  जिसका मन होश में है, वही मनुष्य है...


मैंने तुरंत ही फिर पूछा, शिव...किसका मन होश में माना जाए, यह कैसे जाना जाए कि कोई होश में है ??


कुछ क्षण रुककर वे बोले-- जो किसी की बात को पूरा सुनकर आवेशित न होकर अपनी सहजता नही खोए, वही होश में है..


तब मैंने पूछा कि, यदि कोई आपको अपशब्द कहे या कोई गलत व्यक्ति ही हो, उसके प्रति अपनी सहजता को कैसे बनाये रखा जाए ?? 


अबकी बार उन्होंने मुझे थोड़े ध्यान से देखा और शायद उन्हें लगा कि मेरे प्रश्न ज्यादा हो रहे हैं, तो कुछ रुककर बोले-- सहजता हमेशा विनयशील हो, यह जरूरी नही, कर्म के आचरण पर और उसके प्रतिव्यवहार पर सहजता आधारित हो सकती है....


जैसे परशुराम जी के धनुष को जब भगवान श्रीरामजी स्वयंवर में माता सीता के लिए तोड़ते हैं तब वह यह व्यवहार बड़ी सहजता से करते हैं जबकि परशुराम जी समेत कई लोगों को उनके दृष्टिकोण से यह असहज व्यवहार प्रतीत होता है... यह कहकर वे शांत हो गए...


कुछ देर बाद एकदम से बोले परंतु याद रखना यदा कदा कभी कोई मनुष्य होश में होता है... यह कहकर वे अचानक से मुड़कर जाने लगे, मुझे लगा कि उन्होंने ये अंतिम बात क्यों कही, ये मुझे पूछना चाहिए...


परंतु तब तक वे कुछ कदम अपने आगे बढ़ा चुके थे, कुछ दूरी पर जाकर अचानक से पलटे और... तभी शिव मुझसे बोले, तुम सोचती बहुत हो, पर जानती हो कभी-कभी ज्यादा सोचना भी बहुत हानिकारक होता है, मेरी अंतिम बात एक दिन जीवन में स्वतः ही समझ जाओगी, इसलिए अब लौट जाओ... और वे पुनः आगे बढ़कर जाने लगे..


उन्होंने मेरे मन की बात कैसे जान ली, यह तो मुझे बड़ा आश्चर्य लगा, मैंने आव देखा न ताव तुरंत ही जोर से उनसे पूछा, ( चूंकि वे कुछ दूर जा चुके थे )... शिव क्या आप होश में हैं ?? 


कभी-कभी लोगों से मैं अजीब प्रश्न पूछ लेती हूं, उनसे यह पूछने के बाद तुरंत बाद ही मुझे महसूस हुआ कि, ये कहीं ज्यादा तो नही हो गया, एक मन को जानने वाले सिद्ध शिव से ऐसा प्रश्न क्या मुझे करना चाहिए था ?? पर शब्द निकल चुके थे, मेरा शिव मुझे अजीब निगाह से देख रहा था, उसे भी लगा कि यह प्रश्न शायद मुझे नही करना चाहिए था..


पर देर हो चुकी थी, मैं जोर से चिल्लाकर उनसे पूछ चुकी थी, वे एकदम से रुके और मुड़े... शिव ने हमारी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए एकदम से हंसने लगे, फिर तो उनकी हंसी इतनी बढ़ गई कि वे हंसते हंसते लोट पोट से हो गए।


उनकी निरंतर निर्मल हंसी देखकर हम दोनों तक को खतरनाक हंसी आ गई.. थोड़ी देर बाद हंसते हंसते हुए ही वे दूर निकल गए और न जाने कहां जंगल में पेड़ों और झाड़ियों के बीच अदृश्य हो गए..


फिर लंबा समय गुजर गया पर मैं सच कहती हूँ ऐसी निर्मल और जोरदार हंसी मैंने आज तक किसी की नही देखी, मुझे वो हंसी आज भी ऐसे याद है जैसे अभी कोई मेरे सामने इतनी तन्मयता और तल्लीनता से हंस रहा हो।


मैं आजतक पूरी तरह नही समझ पायी कि, वो हंसे क्यों ?? पर हाँ आज भी जब कभी यह याद आता है कि..( शिव ने कहा था, जो होश में है वही मनुष्य है ) तो किसी को जब पाती हूं कि, कोई दौलत, कोई शोहरत, कोई नशा, कोई निशा तो कोई अहंकार में डूबा है तो मुझे शिव दूर कहीं हंसते हुए नजर आने लगते हैं और उनको हंसते देखकर मेरी भी हंसी छूट जाती है..


लोग मुझसे पूछते हैं क्या हुआ ?? और मैं सिर्फ़ इतना कह पाती हूं कि, बस कुछ पुराना याद आ गया..और फिर मैं भी स्वयं को बेहोशों की बस्ती में आत्मसमर्पित कर देती हूं.....




महा माया माँ गंगा सदैव सभी की रक्षा करें,,🙏🏼🙏🏼

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