जब वीर हनुमान की आखों से अश्रु धारा बह रही थी,,,। स.संपादक शिवाकांत पाठक।

 



आपने कभी सोचा है! युग बीत गए पर ‘रामायण’ हमारे हृदयपटल से एक क्षण के लिए भी विलुप्त क्यूँ नहीं हुई!


क्यूँकि ‘रामायण’ हमारे समक्ष प्रेम, त्याग, समर्पण का एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत करते है। जिसको सुनने के बाद उसका एक-एक पात्र हमें जीवन में अनेकों सीख दे जाता है।


आइए आज एक ऐसा ही वृतान्त सुनते हैं


मेघनाद से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण जी को शक्ति लग जाती है और श्री हनुमानजी उनके लिये संजीवनी का पहाड़ लेके लौट रहे होते हैं,


तो बीच में अयोध्या में भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं। तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि माता सीता को रावण हर ले गया है और लक्ष्मण जी वहाँ शक्ति लगने से मूर्छित पड़े हैं।


यह बात जब कौशल्या माता को ज्ञात होती है तो वो कहती हैं कि श्री राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखें, राम वन में ही रहे। 


माता सुमित्रा कहती हैं कि, राम से कहना कि कोई बात नहीं अभी शत्रुघ्न है, मैं उसे भेज दूंगी। मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं। 


माताओं का प्रेम देखकर श्री हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह निकली। परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो वे सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं ? क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं ?


हनुमान जी ने उनके समक्ष हाथ जोड़े और पूछा- हे देवी,क्या मै आपकी इस प्रसन्नता का कारण जान सकता हूँ ?



आपके पति के प्राण संकट में हैं। सूर्य उदित होते ही ‘सूर्य कुल’ का दीपक बुझ जायेगा। यह सुनकर उर्मिला जी ने जो उत्तर दिया उसे सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह सकता।


उर्मिला जी बोलीं- “मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता। रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता। 


आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं। जो योगेश्वर राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता। 


यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं। मेरे पति जब से वन गये हैं, तब से वे सोये नहीं हैं।


उन्होंने बड़े भैया की सेवा और रक्षा के लिए एक क्षण भी न सोने का प्रण लिया था। 


इसलिए वे थोड़ी देर बस विश्राम कर रहे हैं। और जब स्वयं भगवान् की गोद मिल गयी हो तो विश्राम थोड़ा दीर्घ हो गया। वे उठ जायेंगे। 


और हाँ! शक्ति तो मेरे पति को लगी ही नहीं, शक्ति तो रामजी को लगी है।


मेरे स्वामी की तो हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम-रोम में राम हैं, उनके रक्त की बूंद-बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में सिर्फ राम ही हैं, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा होगा।


इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ। सूर्य उदित नहीं होगा।”


जय श्री सीताराम

“ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की ”


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