सूरज से कहीं ज्यादा लोग जल रहे हैं,,, क्यों कि आस्तीनों में अब सांप पल रहे हैं ,!

 



स.संपादक शिवाकांत पाठक।


आज के समय में सब मतलबी हो चले है सब एक दूसरे की तरक्की देख कर जलते है। आप जिसे भी अपना समझते है वह आप से जलने लगते है। जब आपको उन के जलने का पता चलता है तो दर्द तो होता है पर आपको इस बात से बहुत बुरा लगता है की आपके अपने भी आपसे से जलने लगे है। 

जलना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जो कि व्यक्ति के जन्म से शुरू होती है क्यों कि व्यक्ति के जन्म लेने से पूर्व ही उसके द्वारा किए गए कर्मों के अनुसार उसके भाग्य का निर्माण होता है,, आपने देखा होगा कि जिसका स्वभाव झूठ बोलने का है वह झूठ बोलना नहीं छोड़ता आप कुछ भी कर लें,,, क्यों कि वह उसका स्वभाव है,, झूठ चाल फरेब आदि जिसके स्वभाव में शामिल है उनसे आप अपने हित के लिए उम्मीद नहीं रख सकते,,,


आप देखते हैं कि बड़े बड़े अमीर लोग भी उसी तरह से शमशान में दफनाए या जलाए जाते हैं जिस तरह से गरीबों का अंतिम संस्कार किया जाता है,,

तो फिर अमीरी का सही मायने में सत्य क्या हुआ,,,?


भगवान के मंदिरों में पैसे देकर वी आई पी दर्शन करने वाले लोग भी अंतिम संस्कार के समय असहाय महसूस करतें या देखे गए हैं,,


सच तो यही है कि आज सूरज भी इतना नहीं जल रहा है जितना कि इंसान खुद इंसान से जल रहा था,,


जलो भाई हम कौन रोक रहें हैं,, अगर आप जलोगे तो रोशनी जरूर किसी पड़ोसी के घर पर होंगी यही सत्य है,,


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