फिर कैसे बेवफ़ा मैं. ?



 *मोहसीन अली जिला ब्यूरो चीफ हरिद्वार उत्तराखंड*


फिर कैसे वेवफा मैं  🙏



दिल की हर धड़कन तेरे नाम , फिर कैसे बेवफ़ा मैं ?

मेरी हर साँस तेरा ग़ुलाम , फिर कैसे बेवफ़ा मैं ?

••

तुझसे अलग कभी भी अपने-आपको माना ही नहीं ,

तेरे बिना कहाँ सुबहो-शाम , फिर कैसे बेवफ़ा मैं ?

••

ज़िंदगी में तू शामिल नहीं तो मतलब नहीं ज़िंदगी का ?

तेरे बिन जब जीना हराम , फिर कैसे बेवफ़ा मैं ?

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बेरंग फ़िज़ा है जिसमें तेरी कोई खूशबू नहीं ?

तुझपे कभी लगाऊँ न इल्ज़ाम , फिर कैसे बेवफ़ा मैं ?

••

तू ज़ेहन में बस चुकी है हमदम सात जन्मों के लिए ,

अब सूझता नहीं कोई काम , फिर कैसे बेवफ़ा मैं ?

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तेरे प्यार में खोये इस तरहा कि कुछ परवाह नहीं ,

ज़माने ने कर रखा बदनाम , फिर कैसे बेवफ़ा मैं ?

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सब पूछते हैं अक्सर , कहाँ खोये रहते हो “कृष्णा” ,

उधर रुह का अग़र है क़याम , फिर कैसे बेवफ़ा मैं ?

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