पत्रकार का पैगाम ईश्वर के नाम



 ऐक पत्रकार का पैगाम, ऊपर वाले के नाम! स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक! हे दुनियाँ बनाने वाले विश्व के रचनाकार  आप हो यह तो सोलह आने सच है कोई माने या ना माने परन्तु मैं मानता हूँ  कि धरती, आसमान, पेड़, पौधे, जीव, जन्तु, हवा, पानी  के साथ साथ तमाम ऐसी रचनायें हैं  जो मानव मष्तिक की समझ से परे हैं किन्तु  आप तो अनाथों के नाथ हैं यानि बेसहारा लोगों के सहारा हैं आप न्याय के साथ हैं बिना आप की मर्जी के पत्ता नहीं हिलता आपको  कोई  जब  कष्ट में पुकारता है तो दौड़े  चले आते हो , जैसे हाथी का पैक पकड़ कर जब मगरमच्छ  नदी की ओर घसीटता है तो हाँथी ऐक पुष्प अपनी सूड़ में लेकर आपको पुकारता है आप दौड़े चले आते हैं, सुदामा बेहद दुखदायी स्थिति में आपसे मिलने गया सुदामा की दोस्ती निभाने के लिए आप दौड़ कर चले जाते हैं सीने से लगा लेते हैं  क्या यह सब झूठ है प्रभु  यहाँ पृथ्वी पर इस समय कौन सा  ऐसा पाप है जो नहीं हो रहा है सिस्टम चलाने वाले ही भृष्टाचार में सहभागी हैं आप जिस धरती को पाताल से लेकर आये थे उसका सौदा हो रहा है  वाकायदे परमीशन दिया जाता है  और परमीशन की आड़ में हजारों घन मीटर अवैध खनन भी होता है प्रभु  सौदागर कोई और नहीं उसी धरती की संताने हैं ऐक पत्रकार  का कार्यभार ही तो सौंपा है आपने मेरे हांथों में  वह तो मैं निभा रहा हूँ अन्याय अत्याचार के विरोध में  कलम युध्द लड़ रहा हूँ  लेकिन आपको तो सबकुछ  पता है, तमाम पत्रकार झूठे मुकदमे के शिकार होते हैं तमामों का सीना गोलियों से छलनी कर दिया जाता है  क्यों कि पत्रकारों  की  आजीविका के लिए  पृथ्वी लोक की सरकारों ने कुछ  भी नहीं सोचा जो वास्तव में जनता के साथ है उसके बारे में कुछ भी नहीं किया उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा, व  बच्चों की पढ़ाई के लिए कोई भी विधेयक लाने की पहल नहीं की गई लेकिन आप तो सरकारों के सरकार हैं  प्रभु  आप  से क्या छिपा है तो आप ही बतायें कि सारे जीवन पत्रकारिता के बदले  यदि  उसका परिवार  व वह पत्रकार खुद  आभाव ग्रस्त जीवन जिये व भृष्ट लोग शानदार गाड़ियों से घूमें  बड़ी बड़ी कोठियों  में ऐसो आराम करें तो आप कर क्या रहे हैं प्रभु और आप की महान शक्तियों  को क्या हो गया है प्रभु ? ऐक बात कहूँ इतनी कठिन परीक्षा ना लो  कर्तव्यनिष्ठ पत्रकारों की  क्यों कि जन सेवा के नाम पर तमाम नेताओ को आपने करोड़पति बना दिया लेकिन जो वास्तव में जनता की आवाज उठाने का फर्ज बखूबी निभा रहा है लेकिन उनका फोन वे ही रिसीव नही करते जो खुद को जनता का अभिन्न अंग मानते हैं लेकिन जो बिकना नहीं चाहता  उसकी दुर्दसा पर आप मौन क्यों हैं  और जो बिकाऊ हैं उन्हे तो मालामाल होने से कोई भी रोक नहीं सकता प्रभु रामायण या  तमाम ग्रंथ बताते है कि बिना आपकी मर्जी के पत्ता भी नहीं हिल सकता तो यह लेख मैंनै आपकी ही दी हुई प्रेरणा से लिखा है बाकी आप जाने आपका काम जाने मैं चंद सांसो से फूलने वाला गुब्बारा हूँ  जो सांसे भी आपकी ही दी हुई सौगात प्रभु हम  पत्रकारों सरकारें तो क्या बैंक वाले भी लोन नहीं देते  प्राइवेट जॉब वाले  दूर से ही  बॉय बॉय करते हैं हम सभा का सहारा सिर्फ  और सिर्फ आप हैं अब आप ही कृपा करें दुनियां के बनाने वाले प्रभु आपको कोटि कोटि नमन ! ये पत्र आपको मैं पत्रकारों की ओर से ग्यापन के रूप में  सौंप रहा हूँ अब आप भी सिस्टम की तरह ठंडे बस्ते में ना डालना प्रभु  जल्दी  ही  हम पत्रकारों के लिए भी कुछ सोचिये!

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