पत्रकारो की आपसी फूट के परिणाम


 पत्रकारों में छोटे बड़े होने की अग्यानता के परिणाम! अक्सर देखने में आता है कि पत्रकारों में अहम भावना जाग्रत होकर अभिमान का रूप ले लेती है व अपने को बड़ा तथा अन्य को छोटा बता कर लोगों में यह संदेश देते हैं कि  हम ऐक नहीं हैं संगठित नहीं हैं और इसका फायदा उठाकर भृष्टाचार में लिप्त लोग पत्रकारों का उत्पीड़न करते हैं कुछ दिनों पूर्व बहादराबाद में सी ओ मैडम की बाइट लेने कुछ पत्रकार पहले पहुंच गए  व कुर्सी पर विराजमान देख बाद में पहुंचे पत्रकारों का पारा हाई हो गया  ये तो सारे के सारे पोर्टल वाले हैं  हम टी वी व अखवारों वाले हैं  वादविवाद ज्यादा बढ़ते देख मैडम जी ने समझाया व कहा कि हमारी नजरों में तो सभी बराबर हैं लेकिन काश किसी ने उनके इस सार गर्भित बयान पर गौर किया होता तो अभिमान नष्ट हो जाता  सभी बराबर का मतलब क्या है  जब टी वी चेनल वाले खुद को बहुत बड़ा बताते हैं तो अक्सर अखवार वाले उनके पीछे हो लेते हैं भाई  मिलजुल कर हथियार उठाओ, मिलकर कदम बढ़ाओ  अब यहाँ ऐक बात  पर पुनः  गौर करें कि मैडम जी ने सभी को बराबर क्यों कहा ? हमारे भारतीय संविधान में  पत्रकारिता  को कोई भी विशेष दर्जा ना देते हुए  अनुच्छेद 19 का जिक्र आया है  वह सभी के लिए समान है  वह है विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जो कि सभी को है प्रत्येक भारतीय को है हम अपने विचार  लिखकर  बोल कर  छपवा कर व्यक्त कर सकते हैं लोग पहले अपनी समस्याओं को पम्पलेट में छपवा कर  बटवाते थे अन्याय अत्याचार का विरोध पम्पलेट से करते थे वे इसके लिए स्वतंत्रत हैं  आज भी  हैं  हम सभी को विचार प्रकट करने की आजादी अब सवाल खड़ा होता है कि टी वी चेनल वाले पत्रकार बड़े होते हैं  यहाँ  बड़े होने का तात्पर्य लम्बाई चौड़ाई से  है या प्राचीनता से बात नये पुराने की यदि है तो हमारे बाप दादा ने टी वी देखी ही नहीं  टी वी का तो सन 71 में जन्म हुआ व अखवारों का इतिहास बहुत पुराना है तो बड़ा कौन हुआ  अब  देखते हैं  दर्शक व पाठक यानि पढ़ने वालों की संख्या तो  छोटा सा नमूना मैं अपने मित्र के यहाँ  गया चाय आई  मैं पीने लगा  देखा कि  चाय बेटी बना कर लाई  था मिसेज  कम्पनी गई थी व बच्चे  टी वी पर  मोटू पतलू  देख रहे थे  अब सोचिये  भी आप और फैसला भी आप ही करिये कि  सच क्या है क्यों आपस में मिलकर  नहीं रहना चाहते हम, हमारी फूट का ही परिणाम था दो कि फिरंगियों ने वर्षों हमको गुलाम बना कर रखा! अब जरा  गौर करें भारतीय संविधान के अनुच्छेद धारा 19 पर 👇


*अनुच्छेद 19* (1) (ए) के तहत एक मौलिक अधिकार है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 भारत के नागरिकों के लिए कुछ चीजों की स्वतंत्रता की बात करता है। अनुच्छेद 19 (1) के तहत ये हमारे मौलिक अधिकार हैं, जिन्हें हमसे कोई नहीं छीन सकता। अनुच्छेद 19(1)(ए) में सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। 19(1)(बी) में बिना हथियार किसी जगह शांतिपूर्वक इकट्ठा होने का अधिकार, 19(1)(सी) में संघ या संगठन बनाने का अधिकार, 19(1)(डी) में भारत में कहीं भी स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार, 19(1)(ई) में भारत के किसी भी हिस्से में रहने और बसने का अधिकार, 19(1)(एफ) में इसे हटाया जा चुका है (पहले इसमें संपत्ति के अधिकार का प्रावधान था), 19(1)(जी) में कोई भी व्यवसाय, पेशा अपनाने या व्यापार करने का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 19 का खंड (1) जहां मौलिक अधिकारों की बात करता है, वहीं अनुच्छेद 19 (2) के तहत इन अधिकारों को सीमित भी किया गया है। अनुच्छेद 19 (2) में कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से किसी भी तरह देश की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता को नुकसान नहीं होना चाहिए। इन तीन चीजों के संरक्षण के लिए अगर कोई कानून है या बन रहा है, तो उसमें भी बाधा नहीं आनी चाहिए।

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