अच्छे दिन का सच (हास्य व्यंग्य)

 


*अच्छे दिन*!   👉👉👉 *हास्य लेख** **रोना वेवकूफी है जरा हंस लो***लोग वेवकूफ हैं  अक्सर कहते देखा है कि मोदी जी कहते थे कि अच्छे दिन आयेगें  लेकिन हमको तो कुछ भी नहीं दिख रहा है, क्या नहीं दिख रहा है  ? कोरोना लॉक डाउन के समय शुध्द आक्सीजन मिली  कार्बनडाईआक्साइड  दिख नहीं रही थी  घर से कहीं निकलना ही नहीं था बैठे बैठे तीन टाइम खाना मिल रहा था वीवी  की फरमाइसें भी पूरी तरह बंद थीं  कि  घूमने चलो लहंगा लाओ, साड़ी लाओ, समोसे लाओ, चाट लाओ कपड़े भी साफ करो ना करो  कोई झंझट नहीं आराम ही आराम  काम कुछ नहीं कर्जा देने का भी झंझट खत्म  मांगने वाले भी चुप थे कि भाई कहाँ से देगा , तो ये बताइये कि  इससे भी ज्यादा अच्छे दिन क्या होतें  बैड पर बैठे बैठे  कभी पकौड़ी तो कभी  हलवा का पूरा मजा लिया  घर की खटपट भी बंद शांति ही शांति  वीवी ये भी नहीं कह सकती  क्यों लेट कहाँ  देर लगा दी  कहाँ चक्कर चल रहा है  सारी बक बक बंद  वायुमंडल शांत घर में भी शांति और कैसा होता है  रामराज्य  भइया राम राज्य में भी बिना किये बैठे बैठे कहाँ खाने को मिल रहा था  लेकिन अपनी अपनी सोच है अपना अपना नजरिया किसको  क्या कहा जाये !  सरकार ने तो इतना तक कर दिया कि भाई फोन करने जैसी तकलीफ भी ना उठानी पड़े जनता को इसलिए ऐसी रिंग टोन लगवा दी थी कि फोन करने से पहले आदमी को घंटो हिम्मत करना पड़ती थी आज भी  है  कहीं भी फोन मिलाओगे तो सबसे पहले तो खांसी की आवाज तुम्हारी अंतड़ियां तक हिला कर रख देगी जैसे साक्षात कोरोना ही मुँह फैलाये खड़ा हुआ है  व खांस कर बुला रहा है  उसके बाद फिर  कोरोना भागवत की पूरी कथा तुम्हारे बचे खुचे हौसले पस्त कर देगी  तो लोग फोन करने से पहले सोचते हैं कि इतनी बड़ी सिरदर्दी  खामख्वाह क्यों मोल ले भाड़ में जाये फोन  हम सुखी तो जग सुखी! सरकार की बात मानोगे तो मौज में रहोगे वरना समझो गई भैंस पानी में  ! ऐक आदमी बड़ा भक्त था भगवान का वह कोरोना से निपट गया यानि हो गया काम   व पहुचा सीधे धर्म लोक  व भगवान से बोला प्रभु  आप हमको बचाने नहीं आये भगवान ने कहा वेवकूफ कहीं के कभी सी ऐम बनकर, कभी पी ऐम  कभी डी ऐम व ऐ डी ऐम बनकर, कभी मोबाइल की रिंगटोन बनकर  तुझको बताता रहा कि बहुत ही जरूरी हो तभी घर से निकलना  तब तेरी अकल क्या घास चरने गई थी मैने ही तो गीता में कहा है कि मैं सर्व व्यापक हूँ सभी जगह हूँ सबमें हूँ  मेरे शिवा कुछ भी नहीं है तब  तेरी समझ में पत्थर पड़े थे   मेरी शक्ति को  तूने नहीं जाना  मैं जो चाहता हूँ वही होता है सारा जीवन तू पैसे के लिए भागता रहा  लेकिन दो माह घर बैठ खाने के लिए नहीं कमा पाया धूर्त , लालची तू अपने ही कर्मो से परेशान है भारत  मेरी प्रिय भूमि है वहाँ मैं कभी विवेकानंद, स्वामी रामाकृष्ण परम हंस  ,दयानंद सरस्वती तो कभी राम व कृष्ण तथा मोदी केे रूप में  अवतरित होकर  आसुरी शक्तियों का विनाश व धर्म की  स्थापना करता हूँ 👉 यमदूतो जाओ इसे डाल दो कोरोना कुंड में 😀😀😀😀😀😀😀😀😀स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक वी ऐस इंडिया न्यूज 🙏✍🙏

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