जन्म कुण्डली, हस्त रेखा और अलौकिक जन्मपत्री
जन्म कुण्डली, हस्त रेखा और अलौकिक जन्मपत्री !मनोज श्रीवास्तव सहायक सूचना निदेशक देहरादून! (स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक) वी ऐस इंडिया न्यूज समाचार सेवा!
कर्म रेखा का प्रभाव हस्तरेखा से अधिक होता है। कर्म रेखा पर विश्वास नही होने के कारण हस्तरेख पर विश्वास बढ जाता है। ज्योतिषी भी जन्म तिथि समय को देखते हुए कि वह किस परिस्थिति में पैदा हुआ है लोगो की जन्मपत्री बनते है। उस बेला के समय पैदा होने वाले स्थिति को देखते हुए जिसमें जन्म लेते है और उस स्थिति को देखते है जिस परिस्थिति में जन्म लेते है। यही हमारे भविष्य का आधार बनता है।
हमारी अन्तारिक स्थित हमारे तकदीर को जानने का नेत्र है। कर्म रेखा के लकीरों द्वारा भी जन्मपत्री को जाना जा सकता है। हम प्रैक्टिकल की कर्म रेखा और संकल्पों की लकीर के आधार पर अपने जन्मपत्री को जान सकते है। चेक करें कि हमारे कर्म रेखा की लकीर श्रेष्ठ व स्पष्ट है।
बहुत समय लगन में मगन रहने वालो को प्रारब्ध भी बहुत समय तक प्राप्त होता है। बहुत काल निर्विघ्न रहने और कर्मो की रेखा क्लियर होना ही हमारे जन्मपत्री का आधार बनता है।
यदि हस्तरेखा कटी फटी हो तब श्रेष्ठ भाग्य नही माना जा सकता है। इसी प्रकार यदि विघ्नों के कारण परमात्मा से जुडी हुई बुद्धि की लाइन जब कट होती है अथवा क्लियर नही होती है, तब भाग्य नही बनता है। सभी दशा मंे वृहस्पति की दशा श्रेष्ठ मानी जाती है। चेक करे कि यह दशा हमारे भीतर बहुत समय तक बनी रहती है या बार-बार बदलती रहती है। अर्थात कभी वृहस्पति की दशा तो कभी राहू की दशा तो नही बन जाती है। हमारी अन्तारिक दशा निर्विघ्न नही होने के कारण हम राज्य भाग्य को प्राप्त नही कर पाते है।
ज्ञान सूर्य बन कर हम अपने संकल्प बोल और कर्म को चेक कर अपनी जन्मपत्री बना सकते है और अपने भविष्य को जान सकते है। परखने के बाद चेक करना है और फिर चंेज करना है। ज्ञान बुद्धि से सिद्धी को प्राप्त किया जा सकता है।
अपनी स्व स्थिति से परिस्थिति को पार करना चाहिए। कोई भी देह या देह की दुनियावाली परिस्थिति, स्थिति हमें हिला न सके। अर्थात अंगद के रूप में बुद्धि के पाॅव को प्रकृति की परिस्थिति भी ना हिला सके। जिस भी रूप में विनाशी चीज हमें आकर्षित करे वह मोह कहलाती है। काई चीज हमारी नही है हम केवल ट्रस्टी है, यह मान्यता हमें अंगद बना देती है।
जितना जितना स्व स्थिति, श्रेष्ठ स्थिति, अचल, अडोल एक रस स्थिति में होंगे उतना ही संकल्पों की हलचल समाप्त हो जाती है। एक सेकेण्ड में जिस स्थिति में अपने को स्थित करना चाहिए उसी रूप में स्थित हो जाय। जितना समय जिस समय अपने को चाहे स्थित कर ले। हमें प्रकृति द्वारा बनायी गयी परिस्थिति अपनी ओर आकर्षित न कर सके क्योेकि कर्म भोग के रूप में प्रकृति हमें अपनी ओर आकर्षित करती है।
हमारा लक्ष्य और मान्यता यही है कि हम अचल रहे। लेकिन लक्ष्य और मान्यता और लक्षण और प्रैक्टिकल में अन्तर होता है। बुद्धि रूपी नेत्र से इस अन्तर को समाप्त किया जा सकता है। हमारे पास नेत्र तो है परन्तु इसे यूज करने की योग्यता नही है।
श्रीमत की मान्यता में छोडो और भूल जाओ होता है। भूलना ही छोडना है। पास होते हुए भी यदि छोडे हुए हो तब भूलना कहलाता है। तथाकथित सन्यासियों ने अभी तक छोडा या भूला नही है। कहने को घर बार छोडा है लेकिन वास्तव में नही छोडा है। किनारा किया गया है किन्तु मन से नही भूले है।
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