रघुवर कैसे तुम्हें मनाऊँ 🙏

 


राघव कैसे तुम्हें मनाऊँ 🙏


कण कण में तुम ही व्यापक हो , तुमको मैं क्या भोग लगाऊँ !! 


राघव कैसे तुम्हें मनाऊँ! 


फूलों में भी कलियों में तुम! 

गाँव शहर की गलियों में तुम! !

भोजन खान पान में तुम हो !

मुझ जैसे इंसान में तुम हो!! 

हर सुख और संताप तुम्ही हो! 

पुण्य तुम्ही हो पाप तुम्ही हो!! 

मेरा कुछ भी नहीं यहाँ पर, बदला दो क्या तुम्हें चढ़ाऊँ!

रघुवर कैसे तुम्हें मनाऊँ, रघुवर कैसे तुम्हें मनाऊँ!! 


क्षण भंगुर संसार तुम्हीं हो!

रूप तुम्ही  श्रंगार तुम्हीं हो!! 

वींणा की झंकार तुम्हीं हो! 

सेवा और सत्कार तुम्हीं हो!! 

नौका तुम पतवार तुम्हीं हो! 

घृणा तुम्ही और प्यार तुम्हीं हो !!

बिना तेरे अवशेष नहीं कुछ, हे रघुवर क्या तुम्हें खिलाऊँ !

राघव कैसे तुम्हें मनाऊँ, राघव कैसे तुम्हें मनाऊँ!! 


रचना =स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक  विचार सूचक परिवार हरिव्दार उत्तराखंड  9897145867

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