क्या आप जानते हैं आप कौन हैं?
क्या वास्तव में हम खुद को जानते हैं? (शिवाकान्त पाठक) बड़ा अटपटा सवाल है क्या आप जानते हैं आप कौन हैं ? आप जो भी देख रहे हैं जब आप सोते हैं तो नहीं देख पाते जब आप सोते हैं तो स्वप्न देखते हैं स्वप्न में आप सब कुछ सच मानते हैं जब आँख खुलती है तब आपको महसूस होता है कि मैं स्वप्न देख रहा था ठीक इसी तरह जब हम यह ईश्वर की अनुपम कृपा से मिला जीवन समाप्त करने के बाद पुनः अपनी यात्रा शुरू करते हैं तब हम महसूस करते हैं कि सब कुछ स्वप्न था, धन दौलत, घर, परिवार सब कुछ छोड़ कर चल देतें हैं हम ! हम जाना तो नहीं चाहते लेकिन जाना पड़ता है ,जाना इसलिए नहीं चाहते क्यों कि हम स्वप्न को सच मानते हैं घर, परिवार, धन, दौलत को सच मानते हैं हमारा मोह उन्हे छोड़ना नहीं चाहता लेकिन हमें छोड़ना पड़ता है तब हमको महशूस होता है कि हम क्या हैं हमने यूँ ही अपना जीवन झूठे रिस्ते नातों में बरबाद कर दिया सागर का पानी सूरज की तपन से बादल बनकर जब बरसता है तो फिर पुनः सागर में समाहित हो जाता है तो फिर हम उस विराट सर्व शक्तिमान परम पिता परमात्मा की संतान होकर भी खुद को न पहचानने की भूल करते हैं इस मोह माया की दुनियां में आकर हम अपने पिता यानी ऊपर वाले को भूल जाते हैं ,मैं अमीर हूँ वह गरीब है मेरे पास बंगला है गाड़ी है वह तो साइकिल से चलता है मैं राजपूत हूँ, मैं कलेक्टर हूँ मैं फलाना हूँ ढिमका हूँ , बस इसी तरह हम जीवन जी +वन = जीवन को समझने में नाकाम रहते हैं हम मूल तत्व को खोजने का प्रयास नहीं करते, भक्त प्रहलाद, ध्रुव आदि से हम कुछ भी सीख नहीं पाये, हमारा नाम तो लोगों ने रखा है हम जो भी वस्तुयें देख रहे हैं उनका वास्तविक नाम हम नहीं जानते क्यों कि सभी नाम तो यहीं पर लोगों ने ही रखे हैं जब कि ईश्वर का कोई नाम ही नहीं है तो हमारा नाम कैसे हो सकता है हम उसकी संतान हैं बस हम खुद को पहचान नहीं पाते क्यों कि माया यानी धन दौलत, परिवार में फंस चुके हैं तो समझो कि मछली जाल में फंसी है किंतु फड़फड़ाती है छटपटाती है निकलने के लिए लेकिन आप तो फंस कर भी खुश हैं वाह साहब क्या बात है जाल से नहीं निकलोगे तो फिर कई बार फसोगे इसलिए छटपटाओ और निकलो 🙏
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