संगत का असर
मनोज श्रीवास्तव सहायक सूचना निदेशक देहरादून!! स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक!
संग का रंग अवश्य होता है। क्योकि जो जिसके समीप रहता है उसमें समीप रहने वालों के गुण स्वतः और सहज ही आ जाते है। श्रेष्ठ व्यक्ति के संग में रहने से उसके गुण और संस्कार हमारे भीतर अवश्य ही आ जाते है। इसलिए हमें श्रेष्ठ के संग में रंग का अनुभव करना है।
जैसे स्थूल रंग स्पष्ट दिखता है, वैसे ही मायावी संग का रंग छिप नही सकता है। ठीक इसी प्रकार श्रेष्ठ के संग का रंग भी अवश्य प्रत्यक्ष होता है। जब दर्पण स्पष्ट होता है तभी पाॅवरफुल स्टेज बनती है। क्योकि पाॅवर फुल दर्पण से जो चीज जैसी है वह वैसी ही दिखायी देती है। इस दर्पण से अपनी श्रेष्ठ स्टेज को देखना है।
एक संकल्प अर्थात शुद्ध संकल्प हमारे आत्मिक संगठन की नीव है। एक सकल्प का अर्थ श्रेष्ठ मत है। एक की लगन व एक की मगन में शुद्ध संकल्प की प्राप्ति होती है। शुद्ध संकल्प अर्थात किसी दूसरे संकल्प का अस्तित्व मात्र भी न हो।
शुद्ध संकल्प एक रस स्थिति में मिलता है। एक रस, शुद्ध संकल्प स्थिति में ही विजय का नगाडा बजता है। क्योकि शुद्ध संकल्प हमारी पाॅवरफुल स्टेज है। इस पाॅवरफुल स्टेज पर किसी भी प्रकार के विघ्न का विनाश हो जाता है।
जब सर्व संकल्प एक संकल्प में समहित हो जाय तब इस स्थिति को पाॅवरफुल स्टेज कहते है। इसे हम सम्पूर्ण परिवर्तन की स्टेज कहते है। ऐसी स्थिति में किन्तु, परन्तु, फिर भी जैसे शब्द समाप्त हो जाते है।
पाॅवरफुल स्टेज में हमारा पुराना विघ्नकारी मूल संस्कार समाप्त हो जाता है। तब ऐसी स्थिति में हम नही कहते है कि मेरा यह भाव नही था, मेरी नेचर ही ऐसी है, जबकि ऐसी बात वास्तव में नही है। जब इस बात में भी परिवर्तन आ जाय तभी सम्पूर्ण परिवर्तन कहलता है। इसके सम्बन्ध में शुद्ध संकल्प में ही सदा काल के लिए अभूल एक रस स्थिति बन जाती हैं।
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