याद करो,,पहाड़ों का वास्तविक दर्द देखा है आपने

 





बाढ़ की स्थिति भयावह थी वहां पर!


किन्तु नदियों के किनारे घर बने थे !!


दिल दुखाया है भरोसे ने हमारा!


क्या बताएं हम तो केवल आइने थे !!



 मखमली गद्दों को कब अहसास होगा!



कब हमारे पांव कीचड़ में सने थे!!



जिस तरह चाहा बजाया है सभी ने !


हम नहीं थे आदमी हम झुनझुने थे !!


 तोड़ कर जब दिल पहाड़ों का चले हम!


क्या बताएं हम ही पत्थर के बने थे!! 


धूप में चल कर मिली ना छाव हमको!


याद आया पेड़ वो कितने घने थे !!



बाढ़ की स्थिति भयावह थी वहां पर!


किन्तु नदियों के किनारे घर बने थे!!




रचनाकार==


स. संपादक शिवाकांत पाठक


वी एस इन्डिया न्यूज चैनल दैनिक साप्ताहिक विचार सूचक समाचार पत्र परिवार हरिद्वार उत्तराखंड 

संपर्क =📲9897145867

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