टप्पेबाजो का सेफ जोन बना घंटाघर, मिनटों में बहुमूल्य सामान साफ !

 



स. संपादक शिवाकांत पाठक





नए कप्तान को सलामी दी उठाईगीरों ने





देहरादून 09 सितंबर।



घंटाघर के आसपास का क्षेत्र उठाईगीरों , टप्पेबाजों के लिए सेफ जोन इसलिए बना है कि वहां तीसरी निगाह नदारत है । इसीलिए बदमाश घटना को बेखोफ अंजाम देने से पीछे नहीं हटते । इस बार उठाई गिरोह ने नए कप्तान को सलामी देते हुए राजपत्रित अधिकारी के  बैग से पर्स और मोबाइल की टप्पेबाजी कर उन्हें अपनी सलामी दे दी ।


 उत्तराखंड की राजधानी देहरादून राज्य बनने के बाद से ही अपराधियो  का ठिकाना बना हुआ है , लेकिन जिस ओर लोगों का बहुत कम ध्यान जाता है,वह है उठाईगिरों और उचक्कों का इस हद तक पनपना कि सोचना पड़ता है कि इस व्यवसाय को अपनाने वालों की संख्या कितनी होगी ? दर्द उसी को होता है जो इनका शिकार बनता है ।

ऐसी ही भुक्तभोगी हैं उत्तराखंड सरकार में प्रथम श्रेणी की राजपत्रित उच्चाधिकारी श्रीमती गीतांजलि शर्मा गोयल जो 8 सितंबर की शाम करीब आठ बजे पल्टन बाजार में कोतवाली के पास कामिनी साड़ी सेंटर के पास से स्कूटर द्वारा अपने यमुना कालोनी आवास को चलीं। स्कूटर पर उनकी किशोर वय पुत्री कशिका गोयल बैठी थी । कशिका के कंधे पर एक छोटा सा बैग लटका हुआ था, जिसकी पाकेट ( बैग के पीछे छोटी  जेब) में उनकी मां  गीतांजलि शर्मा गोयल का पर्स और एप्पल का ई फ़ोन रखा हुआ था। इस प्रकार समान रखना कोई असामान्य बात नहीं थी , ऐसा हम सब  ही करते हैं ।


श्रीमती गीतांजलि शर्मा गोयल ने घंटाघर के पहले पल्टन बाजार में मशहूर गैलार्ड आइसक्रीम के सामने पूरी सड़क को घेर आइसक्रीम खाती भारी भीड़ देखी जिसे पार करने में उन्हें चार-पांच मिनट का समय लग गया। यहां इतनी भीड रोज की सामान्य बात है जिसके देहरादून वासी अभ्यस्त हो चुके हैं। आगे बढ़ने पर उन्हें थोड़ा जाम बिन्दाल पुल के पास मिला और वहां भी उन्हें एक-डेढ मिनट लग गया।


श्रीमती गीतांजलि शर्मा गोयल ने घर जाकर पाया कि बेटी के बैग की जेब में रखा उनका पर्स नदारद है। पर्स में एक मंहगा एप्पल ब्रांड का आई फोन, उनका आधिकारिक परिचय पत्र, आधार कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, क्रेडिट कार्ड, चार एटीएम कार्ड, अन्य जरूरी ऐसे ही और सामान के साथ करीब ढाई हजार रुपए थे ।


जाहिर है,जिन दो जगह उन्हें भीड़ का सामना करना पड़ा, वहीं कोई पर्स उड़ाने की ताक में था अथवा थी ,जिसकी सबसे अधिक संभावना गेलोर्ड के पास स्थित भीड़ भाड़ वाली जगह है ,और मौका पाते ही उसने अपने हाथ का कमाल दिखा दिया।


इस संबंध में पीड़ित पक्ष द्वारा करीब साढ़े नौ बजे पुलिस की हैल्पलाईन पर सूचना दे दी गई और सुबह होते ही पुलिस चौकी धारा पर लिखित शिकायत दी ।


अभी जैसे क्लाईमैक्स बाकी था। पुलिस से ही पता चला कि भीड़ भरे जिन स्थानों (घंटाघर के पास स्थित घटना स्थल जैसी) पर ऐसी वारदातें अक्सर होती है, वहां सीसीटीवी या तो काम ही नहीं करते या होते ही नही । 


ऐसे में देखने की बात है कि पुलिस इस मामले में अंधेरे में हाथ पांव मार कर क्या कर पाती है और कब तक उठाईगीर को पकड़ पाती है।


देहरादून में इसी तरह ठक- ठक गिरोह  सक्रीय रहा है जिसने कार सवारों को भीड़ में लूटने का सिलसिला चलाया था। वे भी जोड़ी में भीड़ में, चौराहों पर कार चालकों का सामान उड़ाते थे । उसमें तो पुलिस कोई सामान बरामद करा नहीं पाई थी और पीड़ित लोग इस पुलिस चौकी से दूसरी चौकी ,थाने के चक्कर लगा लगा कर थक-हार कर घर बैठ गये। अगर इस तरह की करीब- करीब स्थाई बन चुकी समस्या का भी पुलिस के पास कोई समाधान नहीं है तो अचानक होने वाले अपराधों में क्या करेगी ?


याद करें,एक बार थाना कोतवाली प्रभारी को तत्कालीन एसएसपी ने घंटाघर स्थित एक आइस क्रीम पार्लर पर देर रात तक कोरोना लॉक डाउन के दौरान सड़क घेर कर लगने वाले मेले को लेकर डांट चुके है । लेकिन सुधार कहीं दिखाई  नहीं दिया ।


सो, नागरिकों को ही घर से बाहर निकलते चौकस रहने का अभ्यास डालना पड़ेगा क्योंकि पुलिस के लिए तो अपराध एक संख्या ही है ।

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