एक अधूरी आस लिए मैं गाता हूं,,,
एक अधूरी आस लिए मैं गाता हूं,,
दूरी के गम को हंस कर पी जाता हूं।।
बहुत चाहता है मन तुमसे मिलने को,,
लेकिन ना जानें क्यों मैं डर जाता हूं।।
झरनों सी आवाज तुम्हारी सुनता हूं,,
जीने से पहले ही मैं मर जाता हूं।।
फूलों में भी आज दिखा चेहरा तेरा,,
भौरें ने क्या किया नहीं लिख पाता हूं,,,।।
तूफ़ानो को आना है तो आने दो,,
दिया प्रेम का बनकर मैं जल जाता हूं।।
स्वरचित मौलिक रचना
स.संपादक शिवाकांत पाठक
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