आप सभी को मां सीता जी के जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ! हरीद्वार!
स. संपादक शिवाकांत पाठक !
देवेंद्र शर्मा शिव शक्ति सेवा समिति ,
दीपक नौटियाल समाज सेवी, महावीर गुसाईं अध्यक्ष पर्वतीय बंधु समाज हरीद्वार, प्रदीप चौधरी जनकल्याण सेवा ट्रस्ट राष्ट्रीय अध्यक्ष, डॉ नीरज नवोदय नगर, मनोज दुबे पत्रकार गली नंबर 209 नवोदय नगर, आर के नौटियाल नवोदय नगर , ने देश व प्रदेश वासियों को मां सीता जी के जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं प्रदान की ! व शिवाकांत पाठक ने कहा कि
वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्रीराम वल्लभा देवी सीता का प्राकट्य पर्व मनाया जाता है। इसलिए इस तिथि को जानकी नवमी और सीता नवमी के नाम से जाना जाता है। मां लक्ष्मी का अवतार माता सीता भूमि रूप हैं,भूमि से उत्पन्न होने के कारण उन्हें भूमात्मजा और राजा जनक की पुत्री होने से उन्हें जानकी भी कहा जाता है। श्री रामजी की प्राणप्रिया सीताजी के जन्म के बारे में रामायण और अन्य पौराणिक ग्रंथों दो कथाएं सर्वाधिक प्रचलित हैं।
राजा जनक की पुत्री सीता
मान्यता है कि एक बार मिथिला में भयंकर अकाल पड़ा उस समय मिथिला के राजा जनक थे। वह बहुत ही ज्ञानी एवं पुण्यात्मा थे। प्रजा के हित में धर्म कर्म के कार्यों में बढ़ चढ़कर रूचि लेते। एक बार मिथिला में भयंकर अकाल पड़ा। ऋषि-मुनियों ने सुझाव दिया कि यदि राजा जनक स्वयं हल चलाकर भूमि जोते तो देवराज इंद्र की कृपा से यह अकाल दूर हो सकता है। प्रजा के हित में राजा ने खुद हल चलाने का निर्णंय लिया। हल चलाते-चलाते एक जगह आकर हल अटक गया,राजा ने देखा कि एक सुंदर स्वर्ण कलश है जिसमें हल की नोक अटकी हुई है। कलश को बाहर निकाला तो उसमें एक अति सुन्दर दिव्य ज्योति लिए नवजात कन्या है। धरती मां के आशीर्वाद स्वरूप राजा जनक ने इस कन्या को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। चूंकि हल की नोक को सीत कहा जाता है इसलिए राजा जनक ने इस कन्या का नाम सीता रखा। जहां पर उन्होंने हल चलाया वह स्थान वर्तमान में बिहार के सीतामढी के पुनौरा राम गांव को बताया जाता है।
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