रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई !
संपादक शिवाकांत पाठक!
आज लोग कुछ कहते हैं और कुछ करते हैं, जिसका उल्लेख रामचरित मानस में देखने को मिलता है भगवान राम ने रावण से युद्ध के दौरान कहा कि तीन तरह के लोग प्रथ्वी पर होते हैं एक वे जो कहते हैं करते नहीं, दूसरे वे जो करते कहते नहीं,, तीसरे प्रकार के लोग कहते हैं और करते भी हैं ,, यह है हमारी भारतीय संस्कृति एवम सभ्यता जो हम सभी जान बूझ कर नीलाम कर रहे हैं,,
कह कर पूरा न करना भी एक धोखा होता है जिसके लिए एक पुरानी कहावत याद आती है,,
दगा किसी का सगा नहीं है किया नहीं तो कर देखो,,
जिसने जिससे दगा किया है उसके जाकर घर देखो,,,
राजा दशरथ से महारानी कैकेयी ने दो वरदानों के रूप में राम के लिए 14 वर्ष के वनवास और भरत के लिए राजगद्दी की मांग की। राजा दशरथ के बार-बार अनुनय-विनय करने पर भी रानी राजी नहीं होती है। वह अपने वचनों पर अडिग रहती है। वह राजा दशरथ से कहती है कि आपको परेशानी है तो अपने वरदान वापस ले लीजिए। इस पर राजा दशरथ ने कहा - रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाई पर वचन न जाई। राजा दशरथ ने कहा हमारे वंश में परंपरा रही है कि कोई भी अपने वचनों से नहीं फिर सकता है। राजा दशरथ विलाप करते रह गए और राम लक्ष्मण और सीता वन को चले गए। राजा दशरथ ने अपने पुत्र राम के वियोग में प्राण त्याग दिए ! ॐ ॐ ॐ आप आज कल्पना करें कि यदि ऐसी स्थिति आ जाए तो क्या पुत्र इतना बड़ा त्याग कर सकता है,,, नहीं,, कदापि नहीं,,, पूरी तरह असंभव है,, तो फिर राम ने इस उम्र में घर को त्याग दिया था जिस उम्र में पूरी तरह से युवा वर्ग जीवन का आनंद लेते हैं ,, लेकिन नहीं ,, वह त्रेता युग था जब पिता के आदेश पर बेटे जवाब नहीं दिया करते थे अनुपालन करते थे,, सतयुग में भी माता पिता के आदेश का पालन, बिना सोचे समझे बेटे करते थे द्वापर युग में आदेश होने पर पूछा जाने लगा कि हम ऐसा क्यों करें कारण पूछने लगे,, और कलयुग में आज बेटे मना करने लगे जिसके जिम्मेदार हम और हमारी समाज है मानव समाज जैसा बोती है बेटे उसी फसल को काटते हैं,, यही सत्य है,,
प्रेरणा,,, बोलने से पहले विस्तार पूर्वक विचार करें ताकि आप बोले गए वचनों को निभा सके,, वरना सत्य तो यही है कि अंत में साथ कुछ भी नहीं जाता है,, जो कि आप आए दिन देख रहे हैं,,,
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