उगते सूरज को तो सभी नमस्कार करते हैँ परन्तु अस्त होने पर नमन क्यों नहीं,,?
स संपादक शिवाकांत पाठक!
एक फ़िल्मी भजन सुना होगा आपने,, सुख के सब साथी दुख में न कोय,,,जीवन में ज्यादातर समय कष्ट में व्यतीत होता हैँ और कष्ट में अपने भी साथ छोड़ जाते हैँ,, लेकिन जो व्यक्ति कष्टों में आपके साथ सदैव रहा हो उसे कभी भूल कर मत भूलना,, क्यों कि ऐसा करने पर एक समय कष्ट में आप अकेले ही दिखेंगे,, आपने देखा होगा चुनाव में विजयी प्रत्यासी के साथ भारी भीड़ दिखती है परंतु उस जीत के लिये वह कई वर्षो तक संघर्ष करता हैँ उस संघर्ष में वह भीड़ साथ नहीं होती,, साथ होते हैँ चंद लोग जो उसके निस्वार्थ कार्यों के कायल होते हैँ,, और वही कार्य उसकी जीत का कारण बनते हैँ,, खुशियों में तमाम लोग आपके पास बिना बुलाये आ जाते हैँ,, और दुख में,,?
दुख मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है जिसमें अपनों की परख होती,, राम को वनवास हुआ तो वन जाने के लिये माँ सीता,, भैया लक्ष्मण ही क्यों तैयार हुये सारा परिवार क्यों नहीं,, क्यों की माँ जानकी बिना राम के जीवित नहीं रह सकती थीं और यही हाल लक्ष्मण का था,, कितना अटूट प्रेम था महलों को छोड़ जंगल के लिये चल दिए साथ निभाने के लिये,, जबकि वनवास तो सिर्फ राम को हुआ था,, लेकिन राम के जो वास्तव में चाहने वाले थे वे सिर्फ सीता और लक्ष्मण ही नहीं अपितु भरत लाल भी थे यदि वे उस समय घर पर होते तो फिर एक अलग ही दृश्य दिखाई देता,,, लेकिन जब भरत को ज्ञात हुआ तो जंगल के लिये चल पड़े भैया को मनाने,,उनके पिता दसरथ का प्रेम भी देखने लायक था वे राम से दूर होते ही प्राण त्याग देते हैँ,, अनन्य प्रेम की परिभाषा है गोस्वामी तुलसीदास कृत राम चरित मानस,,,
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