शाश्वत और जीवंत सत्य जिसे आप भूल चुके हैँ!
संपादक शिवाकांत पाठक!
तुम संसार में ही उलझे रहोगे, पता ही नही चलेगा कब *शरीर* छोड़ चलोगे। पता ही नही चलेगा कब तुमने स्वयं का साथ छोड़ चले। तुम जिन अपनो के लिए इतना कुछ करते थे, तुम जिन अपनो की इतनी फिक्र करते थे, तुम जिन अपनो के लिए दिन रात इतने भागते फिरते थे, वो शरीर छूटने के बाद किसी काम का नही रहेगा। वो शरीर जिससे तुम सारे संसार से लड़ते फिरते हो, उसे शरीर छूटने के बाद जला दिया जाएगा। यह बहुत शाश्वत और जीवंत सत्य है, प्रतिदिन आप यही देख रहे है कितने ही शरीर छोड़ रहे है और वही अपने उस शरीर को जला रहे है। आप जीवन भर जितना कुछ करते है सब पल भर में सिमट जाएगा, यही का यही धरा रह जायेगा, जैसी ही स्वयं का साथ छूटा, शरीर छूटा सब खत्म! यह सब प्रतिदिन देखने के बाद भी उस शाश्वत परमसत्य से, परमात्मा से, परमसत्ता से मुंह मोड़ना कितनी बड़ी मूर्खता है। उस परमसत्ता से छल करना मतलब स्वयं को ही नर्क में धकेलना है। अब तो समय जा रहा है, अब होश में आने की जरूरत है, जागृत भाव मे आने की है जो हुआ सो हुआ अब तो सम्भलने की जरूरत है। भीतर उतरने की जरूरत है जो कब से आपकी प्रतीक्षा में, जो कब से भीतर बैठा है, कब से आपकी राह देख रहा है, कबसे मिलने बैठा। अब उस से मिलने भीतर प्रवेश करना चाहिए। बहुत समय बर्बाद कर लिया अब, ऐसा विचार करके परमात्मा में लग जाओ।
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