ना मंदिर में वो रहता है ना मस्जिद में कोई घर है
ना मंदिर में वो रहता है ना मस्जिद में कोई घर है!
अगर घर है कोई उसका तो तेरे दिल के अंदर है!!
मैं हिन्दू हूं मुसलमां तुम ये इंसानों की फितरत है!
वो मालिक है सभी का उसके आगे सब बराबर है!!
है अंदाजा तुम्हे आगे सफर मुश्किल भरा होगा!
मगर जब हम सफर है वो तो फिर किस बात का डर है!!
नहीं मालूम तुमको ज़र्रे ज़र्रे में छिपा है वो!
वो हर कतरा है दरिया है वही हर इक समुंदर है!!
निगाहों में बसी दुनियां तुम्हारे,वो दिखे कैसे!
ना उसका रूप है ना रंग है वो तेरे अंदर है!
मैं डरता तो नहीं गर डर भी जाऊं तो डरूं किससे!
मुझे सारे जहां में सिर्फ एक मालिक का ही डर है!!
*रचना=*स. *संपादक शिवाकांत पाठक*
*वी एस इन्डिया न्यूज परिवार हरिद्वार उत्तराखंड*
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