अनगिनत लांशे
💀अनगिनत अंजान लाशें..!
हैं कहीं पर तैरती लाशें।
तो कहीं पर अधजली लाशें।
तैरकर आईं कहाँ से हैं,
कौन हैं कब बोलती लाशें।
बर्फ़ की हैं सिल्लियाँ,अब तो,
जो कभी थीं ज़िन्दगी लाशें।
आज सिस्टम फ़ेल है सारा,
बन गईं शर्मिन्दगी लाशें।
बेगुनाहों को सज़ा क्यूँ दी,
घूर कर हैं पूछती लाशें।
पूछ कर तो देखिए घर से,
किस कदर हैं कीमती लाशें।
कान देकर ग़ौर से सुन लो,
बददुआ हैं चीखती लाशें।
बेबसी में रो रहा है बस,
ढो रहा है आदमी लाशें।
बच गए हैं जो अभी उनकी,
कर रहीं हैं पैरवी लाशें।
ग़ैर - ज़िम्मेदार लोगों की,
बन गयीं बदकिस्मती लाशें।
आज हर अख़बार की दिन रात
बन गईं हैं ये सनसनी लाशें।।
रिजवान खान संयुक्त सचिव किसान कांग्रेस उत्ताखंड🙏🙏🙏🙏
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