पॉजिटिव रहने की खुराक है- प्रातः काल अमृत बेला! मनोज श्रीवास्तव सहायक सूचना निदेशक ( देहरादून उत्तराखंड)

 



विचार न्यूज चैनल

पॉजिटीव रहने की ख़ुराक हमे शक्तिशाली बना देता है। पॉजिटिव रहना और सदा समर्थ, ज्ञान के खज़ाने से सम्पन्न बनना लक्ष्य हमेशा बना रहे ।

 उमंग, उत्साह और लगन से  प्रत्यक्ष करने के प्लान्स (Plans) बनाते हुए, बार-बार स्वयं के गुण गाते, खुशी में नाच रहे । 

 

इस यात्रा के चार्ट में अनेक रूप रंग दिखाई देते है। पोजीशन (Position;) और आपोजीशन (Opposition) दोनों का खेल बना रहता है।


 यथा शक्ति हरेक व्यक्ति अपने पोजीशन पर स्थित रहने का प्रयत्न बहुत करते, लेकिन माया की आपोजीशन, एक रस स्थिति में स्थित होने में विघ्न-स्वरूप बन रही थी।


 इसके पीछे प्रमुख कारण है, (1) एक तो हमारे द्वारा सारे दिन की दिनचर्या पर बार-बार अटेंशन की कमी रह्ती है। 


(2) दूसरा शुद्ध संकल्प का खजाना जमा न होने कारण व्यर्थ संकल्पों में ज्यादा समय व्यतीत करते हैं।


(3) तीसरा, किसी भी प्रकार की छोटी-छोटी परिस्थितियाँ जो हैं कुछ भी नहीं, उन छोटी सी बातों को भी अपनी कमज़ोरी का कारण बहुत बड़ा समझ, उसको मिटाने में टाईम बहुत वेस्ट (Time Waste;समय व्यर्थ) करते हैं। 


 इसका प्रमुख कारण है कि समय प्रति समय जो अनेक प्रकार के परिस्थितियों को पार करने की युक्तियाँ सुनते हैं, वह उस समय घबराने के कारण स्मृति में नहीं आती हैं। 


(4) चौथा अपने ही स्वभाव संस्कार की कमजोरी है, जो हम समझते भी हैं कि नहीं होने चाहिए लेकिन बार-बार उन स्वभाव-संस्कार के वशीभूत होने से धोखा भी खा जाते है


 व्यर्थ संकल्प के कारण तन और मन दोनों कमज़ोर हो जाते हैं। व्यर्थ संकल्प का प्रमुख कारण यह है कि हमें अपनी दिनचर्या को सेट करना नहीं आता।


इसलिये अमृतवेले रोज़ की दिनचर्या, तन की और मन को सेट करे। जैसे तन की दिनचर्या बनाते हो कि सारे दिन में यह-यह कर्म करना है, वैसे अपने स्थूल कार्य के हिसाब से, मन की स्थिति को भी सेट करे ।


 जैसे अमृतवेले परमात्मा की याद के यात्रा का समय सेट करे। ऐसे सुहावने समय पर, जबकि हमे समय का भी सहयोग मिलता है, शुद्ध बुद्धि का सहयोग है, ऐसे समय पर मन की स्थिति भी सबसे पॉवरफुल स्टेज (Powerful Stage;शक्तिशाली स्थिति) बना लेनी चाहिए।  यह अमृतवेले का जैसा श्रेष्ठ समय है, वैसी श्रेष्ठ स्थिति होनी चाहिए। इस समय को यथार्थ रीति यूज़ (USE;प्रयोग) न करने का कारण, सारे दिन की याद की स्थिति पर प्रभाव पड़ता है।


 इससे हमारा सारा समय ,बुद्धि इसी शुद्ध संकल्पो में ही बिजी रहेगी और व्यर्थ संकल्पों से सहज किनारा हो जाएगा। 


लेकिन वास्तव में शुद्ध संकल्पो के खज़ाने को अपना खजाना नहीं बनाते है, इसीलिए खाली रहते है । अर्थात् व्यर्थ संकल्पों को हम स्वयं ही जगह देते है। खाली रहना और कमजोर ,व्यर्थ संकल्प हमारे नेगेटिविटी का कारण बनते है। इसे हम समर्थ ,शुद्ध संकल्प से अर्थात पॉजिटीव रहकर दूर कर सकते है।

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