मां भारती की दर्द भरी पुकार!
बिलखती तड़पती है मां भारती!
रो रो के कहती है मां भारती!!
बेटे हमारे कहां खो गए!
जमीं पर सदा के लिए सो गए!!
जिगर के थे टुकड़े हमारे लिए!
कहां बोझ थे वो तुम्हारे लिए!!
कहां है वो जुमलों व वादों की दुनियां!
हैवानियत के इरादों की दुनियां!!
वो शर्मों हया सब कहां खो गई!
वो इंसानियत गुम कहां हो गई!!
उतारोगे मुर्दों की क्या आरती!
रो रो के कहती है मां भारती!!
रहा ना यहां पर कहीं कोई डर!
ये शासन ये सत्ता यहां है निडर!!
गया वीर अब्दुल नहीं गम हुआ!
भगत सिंह पर दिल नहीं नम हुआ!!
मगर आज लाशों की गिनती नहीं!
इसी बात का दुख नहीं कम हुआ!!
मैं शासन व सत्ता को धिक्करती!
रो रो के कहती है मां भारती!!
रो रो के कहती है मां भारती!!
देश को समर्पित कविता🙏
गुलफाम अली उत्तराखंड प्रभारी वी एस इन्डिया न्यूज
स. संपादक शिवाकांत पाठक उत्तराखंड
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