एक पत्रकार की कलम से मुर्दों की जुबानी!
स. संपादक शिवाकांत पाठक!
शव दाह स्थल पर लंबी कतारें लगी थीं कुछ मुर्दे तो ऐसे थे जिनका परिवार भी मर चुका था कुछ ऐसे थे जिनके परिवार का कोई व्यक्ति नहीं आया था मुर्दे जब अपने जलने की बारी आने का इंतजार करते करते थक जाते हैं तो आपस में बात चीत शुरू कर देते हैं ,
यार कितना जम कर पैसा कमाया हमने कोरोना के चलते एक ओक्सीजन सिलेंडर 30,000 तक का बेचा हम मरते नहीं तो ऐस करते यार जिंदगी भर एक मुर्दे ने दूसरे मुर्दे से कहा,,, साला अस्पतालों में ओक्सीजन नहीं है और कहते हैं कि हम विश्व गुरु बन गए
दूसरा मुर्दा तपाक से बोला भाई मैंने तो सारा का सारा सामान कोरोना कर्फ़्यू के होते ही स्टाक कर लिया था राशन, बीड़ी, तम्बाकू, सारा का सारा , फिर 100 रुपए के 150 रुपए बराबर उतार रहा था लेकिन आग लगे इस बीमारी पर इसने मुझे ही मार डाला लेकिन यार पैसे जम कर कमाए हैं मैंने बच्चे ऐस करेंगे ,,
तभी एक और मुर्दा तपाक से बोला यार कुछ तो शर्म करो यहां जलने के लिए लाइन में लगे हो और बात दौलत की करते हो अब इस समय कहां हैं दौलत ? कमाई तो जितनी मैंने की है तुमने कभी नहीं की होगी करोड़ों रुपए कमीसन मिलती थी मुझे मैं जानते हो कौन था विधायक था विधायक लेकिन किस काम की है वह कमाई अब तो मैं खुद भी चाह कर कुछ नहीं कर सकता जाने क्या होगा उस पैसे का अब दुख होता है हमने ईश्वर को याद ही नहीं किया हम तो खुद को ईश्वर समझते रहे हमारे साथ सिक्योरिटी चलती थी अब आस पास मुर्दों के बीच खुद मुर्दा बना पड़ा हूं !
तभी एक मुर्दे ने पूछा
~'कौन सा नंबर है तुम्हारा'
~'मालूम नही।'
मुर्दे ने बेतकल्लुफ जवाब दिया।
~कौन से नम्बर का दाह हो रहा है?
~अरे मालूम नही बोला न, तुम्हे क्या जल्दी पड़ी है दाह संस्कार की। ज्यादा जल्दी है तो जा चला जा उठ कर ,ज़िंदा था तब राशन, टिकट, बैंक की लाइन में घँटों खड़ा रह लेता था। आज क्या हुआ?
~उस लाइन में मैं खुद लगता था। यहां बच्चे भी लगे हैं लाइन में।
~एक काम कर। खड़ा होकर बजा डाल सबकी। एकदम से नम्बर आएगा।
~जब खड़ा हो सकता था तब नही बजाई। काश, तब बोलते हम।
_~तो अब पड़ा रह शांति से। चुप्पी मारने की सजा यही होती है। जब आदमी कुछ नही बोलता, तब ही आदमी मर जाता है।_
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'तुम्हारी जान कैसे गयी।'
एक मुर्दे ने दूसरे से पूछा।
'ऑक्सीजन नही मिली! तुम कैसे मरे?'
~'मुझे हॉस्पिटल में बेड नही मिला!'
~'कितने सस्ते में मर गए न हम लोग!'
पहले ने आह भरी।
_~हम यही डिज़र्व करते थे भाई। चुपचाप जैसे मर गए वैसे चुपचाप अंतिम संस्कार का इंतजार करो।_
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"मुझे एक बार जीने का मौका मिल जाये तो चीख़ चीख़ कर कहूँ कि हमें सिस्टम ने मारा है। हम इतने बीमार नही थे जितना सिस्टम बीमार निकला।"
एक मुर्दे ने खीझ कर दूसरे मुर्दे से कहा।
_~'चुपचाप पड़ा रह। मुर्दे कभी बोलते नही। यह मुर्दों का देश है साधो। जब जिंदा थे तब भी मुर्दा ही थे हम। अब हेकड़ी दिखाने का कोई लाभ नही!'_
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"यार कितने संस्कार हो चुके, कितने बाकी हैं?"
एक मुर्दे ने दूसरे से पूछा।
~अभी 7 हुए हैं, 27 बाकी हैं। देख ले आजु बाजू, कितने मुर्दे पड़े हैं।
~'कितना बुरा हाल हो गया है देश का।'
पहला मुर्दा सुबकने लगा।
_~दिख गया देश का हाल? अब मुर्दों के जलने की लपटें देख और ऊंचाई नाप मुल्क की तरक्की की।_
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_'सुनो!'
_'बोलो'।
_'हमारे बच्चे इस देश मे कैसे रहेंगे। हर तरफ महामारी और नफरत फैल चुकी है।'
_'हां। लेकिन हमने क्या योगदान दिया कि नफरत न फैले!?'
_'सच मे कुछ भी नही!'
_'_तो एक काम करते हैं। खुद को लानत भेजते हैं और फिर से मर जाते हैं।'_पहले भी तो हम कई बार मरे हैं !
यह सारी बातें मेरी आंखों के सामने हो रही थी क्यों कि मैं एक पत्रकार था इसलिए चुप रह कर सुनता रहा ,
तभी अचानक अलार्म की आवाज घड़ी से आई और मेरी नींद खुल गई देखा तो सुबह के पांच बज रहे थे मैं सोच रहा था कि यह सपना था या की हकीकत?
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