मानव का अहंकार ही अज्ञानता का कारण। स.संपादक शिवाकांत पाठक।
जब हम नहीं थे तब भी दुनियां थी तो फिर स्पष्ट है कि जब हम नहीं होंगे तब भी दुनियां होगी, बडे़ बडे़ बलशाली, ज्ञानी, नरेश जो शब्द भेदी वाण की कला से परांगत थे उनका भी स्थायित्व नहीं रहा सब कुछ उत्पन्न होने के साथ ही विनाश की ओर अग्रसर होता है,, जन्म से मृत्यु के बीच के फासले को जीवन माना गया है,, हमारे जन्म से पहले ही मृत्यु निश्चित होती है,, जन्म होते ही हमारा सफर मृत्यु की ओर इशारा करता है,, जागना जीवन है और सो जाना भी एक मृत्यु के समान है क्यों कि सो जानें पर हम अपनें अस्तित्व को भूल जाते हैं,, तो फिर,, नींद आना, भूख लगना,, प्यास लगना क्या आपके वश मे है,,? नहीं,, क्यों कि जन्म से लेकर मृत्यु तक कोइ भी बात या घटना आपके आधीन नहीं है,, कब किस क्षण क्या होना है यह सिर्फ ईश्वर के अधिकार क्षेत्र में होता है,, सिर्फ कर्म आप कर सकते हो वह भी अच्छे बुरे कर्म का निर्णय आपके हाथों में होता है और कर्म आपके भाग्य का निर्माण करता है,, कर्म के प्रभाव से सती सावित्री ने अपनें पति के प्राण यमराज से वापस ले लिए,, कर्म के प्रभाव के कारण रावण का वध साधारण व्यक्ति तो क्या देवता भी नहीं कर पाए,, स्वयं ईश्वर यानि राम को अवतार लेना पड़ा,,,
आज मनुष्य का अभिमान देखिए कि मृत शरीर में जान नही डाल सकता लेकिन पत्थर की मूर्तियों में जान डालने का दावा करता है,, कहता है कि मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर रहा हूं,,
भगवान या ईश्वर सभी जीवों का परम पिता है,, और उसे सिर्फ़ भाव प्रेम चाहिए,, क्यों कि जो कुछ आप देख रहे हैं वह सब कुछ उसी ने बनाया है,, तो फिर उसे आप क्या अर्पण कर सकते हैं, उल्लेख मिलता है कि,,,प्रभु भाव ग्राही,, वे भाव को गृहण करते हैं,, धन दौलत शोहरत ज्ञान फल फूल सब कुछ उसी ने बनाया है,,, तो फिर उसके प्रति समर्पित हो जाएं यही भक्ति है और यही जीवन का सार है,,
वेद कहते हैं कि ईश्वर ने कहा कि एकोहम द्वतिया नास्ति अर्थात मेरे अलावा दूसरा कोई नहीं है,, और वहीं इसी बात को लेकर राम चरित मानस में गो स्वामी तुलसी दास जी महराज लिखते हैं कि,,
सिया राम मय सब जग जानी,, बहुरी प्रणाम जोर जुग पानी,,,
सारा संसार ही सिया राम मय है दूसरा कोई नहीं है,, फिर,, राग द्वेष किससे और क्यों,,, अभिमान भी किस बात का ,,,,,?
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