हे प्राणेश्वर,,बहिन का तिरस्कार सहन नहीं कर सकती हूं। मां लक्ष्मी। कांव कांव,,,।
स.संपादक शिवाकांत पाठक।
भगवान विष्णु शेषनांग की शैया पर सो रहे थे तभी,, मां लक्ष्मी उन्हे जगाती हैं,,
उठिए प्राणेश्वर,, जागिए, ,,,,,,
विष्णु भगवान,,, क्या बात है प्राण प्रिए,,, अचानक मेरी योग निद्रा भंग करने का कारण क्या है,,,
मां लक्ष्मी,, प्रभू,, मृत्यु लोक में मेरी बहिन वारूणी ( मदिरा ) के साथ पक्षपात पूर्ण व्यवहार किया जा रहा है,, एक ओर मुझे पाने के लिए मेरी बहिन वारुणी को सरेआम इस्तेमाल करते हैं दूसरी ओर,, उसके भक्तो को उससे अलग करने का प्रयास करतें हैं,, यह अनीति है प्रभू,,
मेरी बहिन के साथ ना इंसाफी है, कुछ करो करुणा निधान,,
भगवान विष्णु,,,, देवी तुम सही कह रही हो, लेकिन मृत्यु लोक में कलियुग का राज है,, झूठे , पाखंडी, व्यभिचारी, चालाक,, असत्य भाषण एवम अधर्म पर निर्भर लोग इस समय सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं,,
क्यों कि इस मामले में कलियुग ही निर्णय लेने का अधिकार रखता है,, इसलिए मैं क्या कर सकता हूं,,,,
मां लक्ष्मी,,, प्रभू मेरे प्राणाधार यदि मुझे जीवित देखना चाहते हैं तो कुछ करना होगा आपको,,, मैं अपनी बहिन का अपमान नहीं सह सकती,,,
भगवान विष्णु,,, प्रिए लक्ष्मी,, मैं उपाय करता हूं,, कोइ भी कितना भी जोर लगा ले लेकिन वारुणी तुम्हारी बहिन सदैव ही विशेष महत्वपूर्ण स्थान पर रहेगी,, उसकी शक्ति सदैव ही सभी पर प्रभाव शाली रहेगी,
मां लक्ष्मी ,,, मेरे प्राण प्रिए आपका यह उपकार मै कभी नहीं भूलूंगी 🙏🙏🙏🙏🙏👍
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