आज तक किसने समझा है पहाड़ों का दर्द,, कहां जाता है पर्यटन का करोड़ो रुपए,,,? महावीर गुसाईं प्रदेश सचिव शिव सेना उत्तराखंड।
स.संपादक शिवाकांत पाठक।
पहाड़ों की दुर्दशा आपसे छिपी नहीं है,, दैवीय आपदाएं हों या फिर दुर्घटनाएं,, या फिर पलायन लेकिन इन मुद्दों पर राजनैतिक लोगों का शांत रहना एक सोचनीय विषय है,, आज आए दिन आप सुनते होंगे कि बुलेरो खाई में गिरी दो की मौत,, क्या यही पहाड़ों के विकास की परिभाषा है,,,? भारतीय संस्कृति सभ्यता की धरोहर देव भूमि में,, जंगलों में अवैद्य कटान, अवैद्य खनन, किस बात का संकेत दे रहा है,, क्या आप सभी ने कभी इस बात पर गौर किया है,,,
पिछले 24 वर्षों में हुए चार लोकसभा चुनावों में आपदा कभी बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया। राजनीतिक दलों की उपलब्धियों, राष्ट्रीय और राज्य के अवस्थापना और बुनियादी विकास से जुड़े मुद्दों के शोर में आपदा का मुद्दा हमेशा नेपथ्य में रहा, जबकि हिमालयी राज्य उत्तराखंड हर साल बाढ़, भूस्खलन, अतिवृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेलता रहा है।
एक नजर में उत्तराखंड में हुई प्रमुख आपदाएं।👇🏽
23 जून 1980-उत्तरकाशी में भूस्खलन से तबाही।
1991-1992-चमोली के पिंडर घाटी में भूस्खलन से नुकसान।
11 अगस्त 1998-रुद्रप्रयाग के ऊखीमठ में भूस्खलन।
18 अगस्त 1998-पिथौरागढ़ के मालपा में भूस्खलन में लगभग 350 लोगों की हुई मृत्यु।
10 अगस्त 2002-टिहरी के बुढाकेदार में भूस्खलन।
2 अगस्त 2004-टिहरी बांध में टनल धसने से 29 लोगों की हुई मौत।
7 अगस्त 2009-पिथौरागढ़ के मुनस्यारी में अतिवृष्टि।
17 अगस्त 2010-बागेश्वर के कपकोट में स्कूल में हुए भूस्खलन से 18 बच्चों की हुई मौत।
16 जून 2013-केदारनाथ में हुई जल प्रलय से हजारों लोगों की मौत।
16 जून 2013-पिथौरागढ़ के धारचूला धौलीगंगा व काली नदी में आपदा।
7 फरवरी 2021-रैणी आपदा से सुरंगों में काम करने वाले 200 मजदूरों की मौत।
2023-जोशीमठ में जमीन धंसने से मकानों में दरारें, अभी तक जूझ रहे लोग।
13 झीलों के टूटने का खतरा, केंद्र सतर्क
राज्य की 13 ग्लेशियर झीलें ऐसी हैं, जिन पर टूटने का खतरा मंडरा रहा है। इनमें से पांच झीलों को अति संवेदनशील मानते हुए गृह मंत्रालय ने वैज्ञानिकों की दो टीमें इनके सर्वे में लगा दी हैं। केदारनाथ आपदा में भी ऐसे ही चौराबाड़ी ग्लेशियर टूटने पर झील टूट गई थी, जिससे भारी तबाही हुई थी।
400 गांव संवेदनशील, पुनर्वास में बजट की कमी बाधक
प्रदेश में कई प्राकृतिक आपदाओं में करीब 400 गांव इतने संवेदनशील हैं कि इनका सुरक्षित स्थानाें पर विस्थापन और पुनर्वास होना जरूरी है, लेकिन बजट की कमी भी बाधक है। प्रभावित परिवारों के विस्थापन के लिए अच्छी-खासी धनराशि की जरूरत होती है और राज्य की आर्थिक स्थिति किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में राज्य की स्थिति का वास्ता देते हुए केंद्र सरकार में मजबूती से यहां का पक्ष रखना चाहिए, ताकि वहां से आर्थिक मदद मिल सके और आपदा प्रभावितों का विस्थापन हो सके। बजट पर तब असर पड़ता है जब केंद्र व राज्य में अलग-अलग सरकारें होती हैं। वैसे प्रदेश में आपदा प्रभावितों के विस्थापन एवं पुनर्वास की नीति लागू है। वर्ष 2011 में अस्तित्व में आई नीति के तहत अब तक 85 गांवों के 1458 परिवारों का ही विस्थापन-पुनर्वास हो पाया है। इसमें भी 83 गांवों के 1447 परिवारों का विस्थापन-पुनर्वास पिछले पांच वर्षों के दौरान हुआ। इस पर 61.02 करोड़ रुपये की राशि खर्च की गई।
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