एक बार जरूर पढ़िए,,,संपूर्ण जीवन प्रभु राम की सेवा में समर्पित करने वाले हनुमान जी को जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। स.संपादक शिवाकांत पाठक।

 



धर्म एक आस्था की कसौटी है,, ईश्वर ने ही इस संसार की रचना की है उसके द्वारा निर्मित संपूर्ण विश्व उसकी ही शक्ति का अनूठा उदाहरण है,, लेकिन आस्थावान लोग ईश्वर को मानते हैं नास्तिक लोग नहीं मानते,,


एक व्यक्ति कहता है कि पिता ही मेरा भगवान है और एक कहता है कि जिसने सबको बनाया वह परम पिता परमात्मा सभी में है,, एकोहम द्वितीया न अस्ति,, उसके अलावा दूसरा कोई नहीं है,,


लेकिन यहां बात धर्म की है धर्म एक जीवन की सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है,, धर्म क्या है,,? जहां तक मानव धर्म की बात है तो जिस कार्य से किसी भी आत्मा रूह को कष्ट मिले वह गलत है पाप है, गुनाह है,, तो अब आप ही खुद समझिए कि धर्म की कसौटी पर खरा कौन उतर सकता है,,


रोम रोम में राम रमाने वाले हनुमान जी को कोटि कोटि प्रणाम,,,,, वी एस इंडिया न्यूज चैनल दैनिक विचार सूचक समाचार पत्र परिवार हरिद्वार उत्तराखंड।



राम मन, वचन राम, राम गदा, कटक राम,

मारुति के रोम रोम व्यापक राम नाम है।।


अपने आराध्य श्रीराम की सेवा के लिए शंकरजी का हनुमान अवतार

त्रेतायुग में जब मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने पृथ्वी पर अवतार लेने का निश्चय किया, तब उनके पृथ्वी पर आने से पहले ही सभी देवता अपने-अपने अंशों से वानर तथा भालुओं के रूप में पृथ्वी पर अवतीर्ण हुए। भगवान शंकर तो श्रीराम के अनन्य भक्त ठहरे, उन्होने ध्यान मुद्रा में देखा कि उनके आराध्य भगवान राम प्रथ्वी पर अवतार ले चुके हैं,, बस फिर क्या था,,, भगवान शिव ने अपनी योग शक्ति से प्राण वायु जिसका नाम प्रभंजन था आदेश दिया कि वह तुरन्त ही माता अंजनी के गर्भ में प्रवेश करे,,, माता अंजनी अपने पति केसरी के साथ सात हज़ार वर्षों से सुवर्ण गिरि पर्वत पर भगवान शिव की तरह पुत्र की कामना से तप कर रहीं थीं,, अचानक उन्हें अहसास हुआ कि जैसे उनको किसी ने स्पर्श किया है,,

माता अंजना ने क्रोध में आकर कहा कि कौन है जिसने मेरे सतीत्व को नष्ट करने की कुचेष्टा की है सामने आए वरना मैं अपनी योग शक्ति से श्राप देकर नष्ट कर दूंगी,,


तभी प्रभंजन नाम के वायु देव प्रकट हुए उन्होने माता अंजनी को प्रणाम कर बताया कि भगवान शिव के आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करना मेरा कर्तव्य है,, और ग्यारहवें रुद्र का अवतार आपके द्वारा ही होना भगवान शिव ने सुनिश्चित किया है,,


माता अंजनी को अपनी तपस्या पर प्रसन्नता हुई,, भगवान शिव को उन्होने मन ही मन प्रणाम किया,,

 लेकिन तब माता अंजनी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उनकी कोख से एक वानर की शक्ल के पुत्र ने जन्म लिया,,,


मां अंजनी क्रोधित होकर बोलीं मेरे साथ शिव ने छल किया है मैने शिव जैसा पुत्र मांगा था लेकिन यह तो वानर है,,


क्रोध में विवेक नष्ट हो जाता है,, माता अंजना नहीं जान पाईं की साक्षात देवो के महादेव भगवान शिव ही उनकी गोद में अपनी लीलाएं दिखाने हेतु अवतरित हुए हैं,,,


माता अंजनी पुत्र को एक पर्वत से भेंक देती हैं ताकि समाज यह ना कहे कि अंजनी ने वानर को जन्म दिया,,,


भगवान शंकर उस बालक को पर्वत से नीचे अपनी गोद में उठा लेते हैं और अंजनी के सामने आकर कहते हैं कि तुमने मेरे जैसा पुत्र मांगा था ,, और पुत्र के रुप में मै स्वयं ही तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करने हेतु पुत्र के रुप में आया हूं,, और तुम तिरिष्कार कर रही हो,, पुत्र के रुप से नही उसकी ख्याति से उसकी पहचान होती है,,

यह पुत्र तीनों लोको में तुम्हारा नाम करेगा सभी देवता मिलकर भी तुम्हारे पुत्र का बालबांका नही कर सकते,,


भगवान शंकर के वचन सुनकर अंजनी को पूरा विश्वास हुआ और वे उसे घर लेकर आ गईं,,,


 चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को शंकरजी ने श्रीहनुमान के रूप में अवतार ग्रहण किया। गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं–


जेहि सरीर रति राम सों सोइ आदरहिं सुजान।

रुद्र देह तजि नेहबस बानर भे हनुमान।। (दोहावली १४२)




हनुमानजी भगवान श्रीराम की दास्यभक्ति के आचार्य हैं। वे अपने आराध्य के परमप्रिय दास हैं और श्रीराम उनके सर्वसमर्थ स्वामी हैं। वे स्वयं कहते हैं–’दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य’ अर्थात् ‘मैं कोसलेन्द्र श्रीरामचन्द्र का दास हूं।’  



हनुमानजी ने सम्पूर्ण जगत को राममय देखा। ‘राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम’ ही उनके जीवन का मूल मन्त्र है। हनुमानजी ने इतना राम-नाम जप किया कि स्वयं राम को भी उनके वश में हो जाना पड़ा–


सुमिरि पवनसुत पावन नामू।

अपने बस करि राखे रामू।। ( राम चरित मानस)

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