स्वमान से ही सम्मान की प्राप्ति होती है*
देह अभिमान के त्याग से सम्मान प्राप्ति होती है। देह अभिमान त्याग बिना स्वमान में स्थित नही रह सकते है। स्वमानधारी व्यक्ति अपने स्वमान में स्थित रहते हुए स्वयं को सम्मान देता है और दूसरों को भी सम्मान से देखता है। स्वमान का अर्थ है स्वंय को सम्मान देना। सम्मान देने वाले निंदक को भी मित्र समझते है। अर्थात सम्मान देने वाले को ही अपना नही समझते है बल्कि गाली देने वालो को भी अपना समझते है। स्वमानधारी की निगाह में सम्पूर्ण संसार एक परिवार है।
जिस श्रेष्ठ दृष्टि से हम किसी को देखते है ऐसे ही श्रेष्ठ सृष्टि में हम रहते है। ऐसे व्यक्ति स्वराज अधिकारी होते है अर्थात स्वंय पर राज चलाने वाले होते है। चेक करें कि मन हमको चलाता है या हम मन को चलाते है। स्वराज अधिकारी की स्थिति मास्टर सर्व शक्तिमान की हाती है।
राज्य में हलचल होती है क्योकि धर्म सत्ता अलग हो गई है और राज्य सत्ता अलग हो गई है अर्थात राज्य लगड़ा हो गया है। एक सत्ता न होने के कारण हलचल होती है। अगर हमारे भीतर भी धर्म और राज्य सत्ता दोनो अलग-अलग है तब विघ्न आना स्वभाविक है। हलचल होने के कारण यूद्ध की स्थिति पैदा हो जाती है।
चलाने वाला चला रहा है, कराने वाला करा रहा है, ऐसे निमित्त बन कर कार्य करने वाले बेपरवाह रहते है।
लेकिन मै कर रहा हॅू यदि यह आभास हुआ तो बेपरवाह नही रह सकते है। निमित्त होने की स्मृति निश्चित जीवन का अनुभव कराती है। कोई चिन्ता नही है, कल क्या होगा, बच्चों का क्या होगा, पोत्रों-धो़त्रों का क्या होगा, यह चिन्ता नही रहती है। बेपरवाह बन कर इस निश्चिय में रहते है कि जो हो रहा है वह अच्छा है और जो होने वाला है वह और भी बहुत अच्छा होगा, क्योकि कराने वाला अच्छे से अच्छा है।
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