गोवर्द्धन पूजा : प्राचीन धार्मिक क्रांति की स्मृतियां!*
*स. संपादक शिवाकांत पाठक*
_वर्षा के देवता और वैदिक काल के असंख्य युद्धों के नायक देवराज इंद्र वैदिक काल के सबसे शूरवीर और प्रतापी देवता रहे थे। उनकी सत्तालोलुपता, छल-कपट और कामुकता के अनगिनत किस्सों के बावजूद हजारों साल तक उनकी प्रभुता कायम रही।_
इंद्र की सत्ता के विरुद्ध पहला विद्रोह द्वापर युग में हुआ और उसके नायक बने किशोर वय के श्री कृष्ण।
पुराणों के अनुसार एक बार अतिवृष्टि से गोकुल और वृंदावन जलमग्न हो चले थे। वहां के निवासियों ने अपनी और अपने पशुधन की रक्षा के लिए इंद्र से गुहार लगाई।
_उन्हें प्रसन्न करने के लिए वैदिक यज्ञों और अनुष्ठानों का एक लंबा सिलसिला चला, लेकिन भरपूर 'हवि' पाने के बाद भी इन्द्र मेहरबान नहीं हुए। जलप्रलय की आसन्न स्थिति देखकर कृष्ण ने अहंकारी इंद्र को समर्पित तमाम वैदिक अनुष्ठान बंद करा दिए।_
उन्होंने गोकुल और वृन्दावन के लोगों को ऊंगली के इशारे से गोवर्द्धन पर्वत की ओर चलने का संकेत किया। उनकी बात मानकर लोगों ने अपने परिवार, धन-धान्य और पशुओं के साथ गोवर्द्धन पर्वत की शरण लेकर अपनी और अपने पशुओं की रक्षा की। माना जाता है कि उसी दिन से देवराज इंद्र की पूजा बंद हुई और गोवर्द्धन पर्वत के प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन की परंपरा का आरम्भ हुआ।
_उस युग के संदर्भ में देखें तो एक धर्मभीरु समाज में शक्तिशाली इंद्र को वैदिक काल से चले आ रहे उनके गौरव से अपदस्थ कर देना स्थापित सत्ता और मान्यताओं के विरुद्ध कृष्ण का क्रांतिकारी कदम था।_
उस दिन के बाद देवराज इंद्र अपना खोया हुआ गौरव कभी दुबारा हासिल नहीं कर सके। गोवर्द्धन पूजा या अन्नकूट का पर्व उसी युगांतरकारी घटना की स्मृति है।
_यह पशुपालकों, कृषकों का सबसे बड़ा पर्व है जिसमें पशुधन की सेवा और उसके गोबर से प्रतीकात्मक आकृति गढ़कर गोवर्द्धन पर्वत के प्रति श्रद्धा निवेदित की जाती है।_
आप सबको गोवर्द्धन पूजा या अन्नकूट पर्व की शुभकामनाएं !
*📲 संपर्क सूत्र 9897145867* : व्हाट्सप्प.
Comments
Post a Comment