क्या आप प्रेम का वास्तविक स्वरूप जानते हैं,,
संपादक शिवाकांत पाठक!
यदि नहीं तो बने रहें हमारे साथ हम आपको बताते हैं कि प्रेम का वास्तविक अर्थ क्या है,,
आपने सुना होगा कि प्रेम ही ईश्वर हैं , साथ ही धार्मिक ग्रंथ श्री राम चरित मानस में गो स्वामी तुलसी दास जी महराज ने लिखा है कि हरि व्यापक सर्वत्र समाना प्रेम ते प्रकट होइ मैं जाना,,
यह बात भगवान शंकर सभी देवताओं से अपने पूर्ण अनुभव और बिस्वास के साथ कहते हैं की ईश्वर सभी जगह सामान रुप से है लेकिन वह प्रेम से प्रकट होता है,,
प्रेम का वास्तविक अर्थ आज की युवा पीढ़ी नहीं जानती वह जिसे प्रेम करते हैं उसे पा लेने लो जीत समझते हैं ,, यह प्रेम की परिभाषा नहीं है,, यह तो केवल हमारी कामनाओं का बिगड़ा हुआ स्वरूप होता है वह प्रेम नहीं होता,,,
प्रेम में अपने को भुला देना ,, खुद को हार जाना हो प्रेम होता है,, जैसे मीरा ने किया,, मीरा कृष्ण से प्रेम करती थीं उन्हें पाना नहीं चाहती थीं अन्त में अपने शरीर सहित कृष्ण में समा गई थीं,, यही है प्रेम का सच्चा स्वरूप,,
स्वयं को समाप्त कर ईश्वर में समाहित होने की प्रक्रिया ही प्रेम कहलाती हैं,, जहां एक दूसरे से प्रेम होने पर शेष एक ही रह जाता है उसे प्रेम कहते हैं,,
राम के भाई भरत को राम से प्रेम था उन्होने सत्ता सुख को ठुकरा दिया ,, राम की खड़ाऊ लाकर सिंहासन पर रख दीं ,, ताकि आने वाला समाज भाई भाई के प्रेम को समझ सके ,, लेकिन आज तो धन के लिए भाई भाई की हत्या कर देता है,,,
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