ईश्वर या जनता जर्नादन को दिखावा पसंद नहीं है! हरिद्वार,, उत्तराखंड,,
महावीर गुसाईं पूर्व अध्यक्ष पर्वतीय बंधु समाज!
( जनता की सेवा का ढोंग कर पार्टी का टिकट हासिल करने की कोशिश )
( जनता ईश्वर का रुप होती है तभी तो भगवान् श्री राम ने जनता की बात को सर्वोच्च मानते हुए अपनी प्राण प्रिय सीता का परित्याग कर दिया था)
सवाल है कि जरूरत से अधिक धन का लोग क्या करते हैं, क्यों उसके पीछे पागल हो रहे हैं। मनुष्य को रोटी, कपड़ा व मकान चाहिए, मनुष्य के अलावा किसी भी जीव को धन की अवश्यकता नहीं होती है और मनुष्य के अलावा अन्य जीवों में बीमारियां भी कम देखने को मिलती है,, ऐसा क्यों है,,यहां तक किसी को धन लालसा है तो वह ठीक कही जा सकती है। पर देखा जाता है कि धन की पूर्ति होने पर वह सदाचारियों और मुनियों को इतना महत्व नहीं देता, ज्यादा धनी व्यक्ति अपने आप को भूल जाता है वह झूठ बोलने लग जाता है गलत तरीके से कमाए गए धन के कारण उसकी बुद्धि धन के अलावा परिवार के भविष्य की ओर नहीं जाती,,जितना अपने से अधिक धनियों को देता है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य धन संग्रह की ओर बढ़ता चला जा रहा है। उतने धन की आवश्यकता है या नहीं इसका विचार वह नहीं करता, क्योंकि जीवन के लिए जरूरत हो या न हो किन्तु महान बनने के लिए तो जरूरत है ही। मनुष्य में महान कहलाने की लालसा तीव्र है और महत्ता का माप धन बन गया है। इसलिए मनुष्य धन के पीछे पड़ा हुआ है।
यह बिल्कुल स्वभाविक है। अगर दुनिया में धन से महत्ता मिलेगी तो लोग धन की तरफ झुकेंगे। अगर गुण सेवा सदाचार आदि से मिलेगी तो उसकी तरफ झुकेंगे।
जबकि पहले गुणवान व्यक्ति के महत्व दिया जाता था,, ईमानदार लोगों की कद्र की जाती थी आज झूठ,फरेबी, चापलूस, स्वार्थी लोग जब धनवान बन जाते हैं तो उन्हें समाज में विशेष स्थान या आदर मिलता है,, आज भगवान का नाम लेकर ,, लोग दान एवम चंदा वसूली को ही जीवन की सार्थकता समझ बैठे हैं,, जब कि वे यह भी जानते हैं कि गलत तरीके से कमाए गए धन का प्रभाव बच्चो या परिवार पर पड़ता है ऐसे कई उदाहरण सामने देखने को मिलते हैं लेकिन स्वयं को बुद्धिमान समझने की भूल ही मनुष्य के लिए तमाम दुखों का कारण बनती है,,
अब तो समाज सेवा भी लोग स्वार्थ के लिए करते देखे जा सकते हैं,, क्यों कि निस्वार्थ भाव तो अब रहा ही नहीं,, गरीबों की मदद करने या फिर सरकार द्धारा किए जा रहे विकास के नाम पर अपनी मेहनत को दर्शा कर लोगों को गुमराह करना आज इंसान की सोच का हिस्सा बन चुका है,,
कोरोना काल में सम्पन्न लोगों द्वारा जिसके माध्यम से मदद भेजी गई उसने अपने संकुचित विचार धारा का प्रमाण प्रस्तुत कर अपने ही लोगों तक वह मदद भेजी जो कि बेहद शर्मनाक विषय है,, और लोग यह सब कुछ जान चुके हैं,,
क्यों कि ईश्वर अंतर्मन की बात जान लेता है,, और जनता को शास्त्रों में जनार्दन कहा गया ,, जनार्दन भगवान विष्णु को कहते हैं,, तो स्पष्ट है कि जनता के साथ किया गया धोखा भगवान के साथ किए गए छल के बराबर होता है,,
गो स्वामी तुलसी दास जी महराज लिखते हैं कि भगवान् श्री राम कहते है,, निर्मल जल मन सो मोहि पावा,, मोहि कपट छल छिद्र न भावा,,,
नौटंकी या दिखावा भगवान को पसंद नहीं है,, कोरोना काल में कुछ समर्थ लोगो द्वारा दान दिए गए राशन को देते हुए कुछ लोगों ने अपना आहसान दिखाने हेतु राशन देते हुए फोटो खिंचवाई थी जो कि जनता को गुमराह करना सबित हुआ था,,
मनुष्य को महान बनना चाहिए और दुनिया को महान बनाने वालों की कद्र करनी चाहिए। पर धन और अधिकार से महान बनने वालों की कद्र करना समाज के कष्टों को बढ़ा लेना तथा सच्चे सेवकों को नष्ट कर देना है। किसी आदमी की कद्र करने का अर्थ ही यह है कि वह समाज की ऐसी सेवा कर रहा है जिसका बदला हम भौतिक ²ष्टि से नहीं चुका पा रहे हैं, इसलिए उसे महान कह कर उसका आदर यश बढ़ाकर हम बदल लेना चाहते हैं।
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