सत्य परेशान होता है परास्त नहीं होता समझे या नहीं,,,? स.संपादक शिवाकांत पाठक ( राष्ट्रीय महासचिव पत्रकार योग कल्याण समिति ( राजि)

 


( आपदा में अवसर की तलास करने वाले पत्रकार होते हैं उत्पीड़न का शिकार,,, आखिर क्यों,,? )

आप ने बुजुर्गो से सुना होगा कि सत्य की राह पर चलना चाहिए भले ही कितने भी दुख उठाना पड़ जाएं अंत में विजय सत्य की ही होती,, इस बात के कई उदाहरण इतिहास में मिलते हैं जिन्हे हम झुठला नहीं सकते,!

आज बात करते हैं सत्य की तो सोचिए हमारे देश में न्यायपालिकाए बहुत हैं परंतु न्याय आज भी दम तोड़ रहा है,, वादी को मरने के उपरांत ही ज्यादातर न्याय मिलता है,, अपराध रोकने के लिए बहुत ही सुंदर और अच्छी व्यवस्था है,, लेकिन अपराध पहले की अपेक्षा बढ़ रहा है,, यही सत्य है,, तो फिर ऐसा नहीं है कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था में कोई कमी है,, वल्कि अपराधी तत्वों की वृद्धि दिनोदिन हो रही है, सुरक्षा व्यवस्था से अपराध जगत का विस्तार काफी है लेकिन क्यों,,? इसके ज़िम्मेदार हम और आप हैं दूसरा कोई नहीं है,,! क्यों कि हम खुद अपनी असीमित अवस्यकताओं कि पूर्ति के लिए असत्य का मार्ग अपनाते हैं,, भारतीय संविधान में मीडिया को स्वतंत्र रखा गया है ताकि वह शासन, प्रशासन, एवम समाज की अच्छाई और बुराई को आम जन मानस तक पहुंचाने का कर्तव्य निभा सके,, तो फिर आप गौर करें कि क्या आज मीडिया सिर्फ सत्य को उजागर कर रहा है,, या फिर पहले मीडिया का जो अस्तित्व था वह आज भी कायम है,,? नहीं,, परंतु क्यों,,? सवाल आप से इसलिए उत्तर भी आप को देना उचित होगा,,!


भारतीय संविधान को चार स्तंभों में बांटा गया है,


न्याय पालिका

कार्यपालिका

विधायिका

पत्रकरिता


थोड़ा करें ये कुर्सी के चार पाए हैं, जीन पर भारत की व्यवस्था कायम है, इनमें से मिडिया को छोड़ कर ऐसा कोई भी स्तम्भ नहीं है जिसे स्वास्थ्य, सुरक्षा, सैलरी, बोनस , भत्ता एवम विधायिका को तो वर्तमान समय में पेंशन भी उपलब्ध है ,, अब सोचिए कि जिस समाज एवम राष्ट्र प्रेमी पत्रकार को  पत्रकरिता की आदत,शौक या लत पड़ जाए तो वह अपने परिवार का भरण पोषण कैसे करेगा,,? कोई जवाब है आपके पास,,? यदि वह किसी भी सक्षम व्यक्ति से मदद मांगे तो उसे निराशा ही मिलती है, और यदि वह सत्य को उजागर करे तो उसे अवैधानिक कार्यों में लिप्त लोगों द्वारा उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है,, यह भी एक दम अटल सत्य है,, तो फिर आखिर कैसे एक सफल पत्रकार जोकि राष्ट्र और समाज के लिए सदैव तत्पर रहना अपना फर्ज समझता हो,, अपना व्यक्तिगत जीवन कैसे सफल बना सकता है,,

यह ध्रुव सत्य है कि समाज के लिए सदैव आवाज बुलंद करने वाले पत्रकारो की कभी भी समाज ने मदद नहीं की ,, पत्रकार जब उत्पीड़न का शिकार हुआ तब उसे अपनी जंग खुद लड़नी पड़ी,, यह है चौथे स्तंभ का दुर्भाग्य,,,, हां परंतु आज भी कुछ विवेक शील लोग मीडिया का सहयोग करते हैं जिनके लिए मीडिया सदैव आभारी है,,, और रहेगी,,,


इसलिए ब्रिटिश शासन काल के समय निर्मित भारतीय संविधान में समय रहते संशोधन की महती आवश्यकता है,, यदि संशोधन शीघ्र नहीं किया गया तो फिर आप स्वयं देख रहे हैं कि परिचम सत्य का लहरा रहा है या फिर असत्य का,, बाकी आप स्वयं बुद्धिमान हैं,,🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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