प्राचीनता की विदाई और नवीनता के उल्लास की वजह क्या है
*{जिनके पास दिमाग है उन्हें यह लेख समझ में आयेगा}*
*स. संपादक शिवाकांत पाठक*
नए साल का जश्न मनाने की तैयारियां जोरों पर हैं वर्ष 2021 जा रहा है और वर्ष 2022 आ रहा है 1 जनवरी का वह एक दिन नया होगा बाकी सब कुछ पुराना हो गया सारे रिश्ते नाते जमीन, आसमान, चांद तारे सब कुछ तो पुराना हो जाएगा 1 जनवरी आते ही क्या यही सच है ? हमारे संपर्क में आने वाली हर चीज आने से पहले नई होती है लेकिन संपर्क में आने के बाद वह पुरानी हो जाती है तो फिर हम खुद नए को पुराना करने वाले मशीन साबित होते हैं चाहें कोई भी वस्तु हो या इंसान सब कुछ हमारे संपर्क में आने के पुराना हो जाता है तभी तो नई कार, नया घर , घर में नया पेंट , नए कपड़े सब कुछ नया खोजते रहते हैं हम क्यों हमारे अंदर हर नई चीज को पुराना करने की क्षमता का विकास प्रबल हो चुका है ,लेकिन जो भी हम छोड़ रहे वह इतिहास एक बार फिर अपने आप को दुहराएगा यह ध्रू सत्य है क्यों कि हमारे संपर्क में आने के बाद इंसानियत, सहृदयता, निराभिमानिता, मानवता, परोपकारिता, सेवाभाव, इमानदारी, सज्जनता , विसुद्घ प्रेम आदि सभी पुराने हो चुके हैं इतिहास बन चुके हैं हम काफी समय से नए को पाने की कोशिश में कामयाब होते नजर आ रहे हैं जब कि हमारी हर सांस नई है हमारे विचारों में नया पन नहीं है हम अंदर से दुखी हैं इसलिए हम उत्सव मानते हैं खुद को बहलाने के लिए हमारे अंदर आनंद नहीं है हम खुश होने का आडंबर करते हैं !
*चाहिए ऐसा कि रोज नया चित्त हो सके :*
तब नया साल न होगा, नया दिन न होगा; नये आप होंगे। और तब कोई भी चीज पुरानी नहीं हो सकती। और जो आदमी निरंतर नये में जीने लगे, उस जीवन की खुशी का हिसाब आप लगा सकते हैं?
_जिसके लिए पत्नी पुरानी न पड़ती हो, पति पुराना न पड़ता हो; जिसके लिए कुछ भी पुराना न पड़ता हो। वही रास्ता जो कल जिससे गुजरा था, आज गुजर कर फिर भी नये फूल देख लेता हो, नये पत्ते देख लेता हो- उन्हीं वृक्षों पर, उसी सूरज में नया उदय देख लेता हो, उसी सांझ में नई बदलिया देख लेता हो, जो आदमी रोज नये को ईजाद कर सकता है भीतर से, उस आदमी की खुशी का हम कोई अंदाज नहीं लगा सकते।_
वैसा आदमी सिर्फ बोर नहीं होगा, बाकी सब लोग ऊब जाएंगे।
*पुराना उबाता है। उस ऊब से छूटने के लिए हम थोड़ी-बहुत तरकीब करते हैं, तड़फड़ाते हैं। लेकिन-*
उससे कुछ होता नहीं है। फिर पुराना सेटल हो जाता है। एक-दो दिन बाद फिर पुराना साल शुरू हो जाएगा।
फिर अगले वर्ष तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। नया दिन आएगा, फिर नये दिन हम थोड़े नये कपड़े पहनेंगे, थोड़े मुस्कुरा के, थोड़ी चारों तरफ खुशी की बात करेंगे, और ऐसा लगेगा कि सब नया हो रहा है।
*यह सब झूठा है :*
क्योंकि यह बहुत बार नया हो चुका, और बिलकुल नया कभी नहीं हुआ है। यह हर साल दिन आता है और हर साल पुराना साल वापस लौट आता है।
इससे हमारी आकांक्षा का तो पता चलता है, लेकिन हमारी _समझदारी का पता नहीं चलता। आकांक्षा तो हमारी है कि नया दिन हो, वर्ष में एक ही हो तो भी बहुत।_
*लेकिन ऐसी क्या मजबूरी है ?*
_अगर एक दिन को नया करने की तरकीब पता चल जाए, तो हम हर दिन को नया क्यों नहीं कर सकते
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