यदि आप जश्न मना रहे हैं तो आप उत्तराखंडी नहीं हैं जानते हैं क्यों ?




स. संपादक शिवाकांत पाठक!




नए साल का जश्न मनाना हमारा हक है अधिकार है क्यों कि हम स्वतंत्र हैं लेकिन क्यों ?



काभी आप ने इस बारे में सोचा कि हम यह जश्न मना कर क्या संदेश देना चाहते हैं अपने नई पीढ़ी को जो आए दिन आने वाली आपदाओं की भेंट चढ़ने से बच गई हैं सभी जानते हैं कि  उत्तराखंड भारत के प्रमुख तीर्थ स्थानों का केंद्र बिंदु है जहां हजारों की संख्या में देश, विदेश के पर्यटक आते हैं व सरकारों का लाभ भी है लेकिन यहां पर हर वर्ष आने वाली दैवीय आपदाओं के लिए केवल घड़ियाली आंसू बहाए जाते हैं आज तक किसी भी सरकार ने अपने एजेंडे में उत्तराखंड की भूमि में आने वाली आपदाओं के निराकरण को लेकर कोई जिक्र नहीं किया , आज इसी बात पर हम जश्न मनाते हैं,


हमने केदार नाथ आपदा में जिन्हें खो दिया उनके ना होने का जश्न मनाते हैं ,


चमोली ग्लेशियर की घटना पर हमने जिन्हें खो दिया उन पर जश्न मनाते हैं सच बताओ कि क्या यही है जश्न मनाने का सही कारण या फिर कोई और है?



हम भूल गए उन सच्चे वीरों को जिन्होंने प्रथक उत्तराखंड की मांग को लेकर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए पुलिस की बेरहमी को सहा आज हम उनकी उस शहादत को भुला कर मतलब परस्त लोगों के निजी स्वार्थ सिद्ध होने के लिए उनके साथ हैं अपने उत्तराखंड के लिए नहीं ,,,आज भू कानून की हम मांग कर रहे हैं जब कि हमको अपने ही प्रदेश में यह मांग करना एक शर्म की बात है , जब हमारे ही मंत्री, विधायक, सांसद, मुख्य मंत्री सभी है तो उनको भी तो सोचना चाहिए सोचिए,




उत्तराखंड प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से अति संवेदनशील राज्य है। राज्य गठन के 21 वर्षों में आपदाओं ने भी राजनीति को धार दी। जब-जब राज्य पर आपदाओं ने कहर बरपाया, राजनीतिक दलों ने इसे एक-दूसरे पर निशाना साधने के लिए हथियार बनाया।  लेकिन, राज्य के लिए नासूर बन चुकी इन आपदाओं के जख्मों का मरहम तलाशने के लिए कभी भी किसी राजनीतिक दल ने चुनावी मुद्दा नहीं बनाया।




प्राकृतिक आपदाएं हमें हर साल नए जख्म देती हैं

प्रकृति के प्रकोप से जुड़ीं यह सब बातें राजनीतिक दलों के जेहन में हैं, लेकिन वह इनसे निपटने की नीतियों को अपने घोषणापत्र में शामिल नहीं करती हैं। प्राकृतिक आपदाएं हमें हर साल नए जख्म देती हैं। हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान होता है। हजारों लोग प्रभावित होते हैं और सैकड़ों लोगों की मौत हो जाती है। आज भी सैकड़ों गांव संवेदनशील और अति संवेदनशील श्रेणी में हैं। चार सौ से अधिक परिवारों का विस्थापन किया जाना है। हर साल सड़कें, पुल, बिजली की लाइनें, पानी की लाइनें बह जाती हैं या मलबे में दब जाती हैं। सैकड़ों गांवों का जिला मुख्यालय से कई-कई दिनों तक संपर्क कट जाता है। एक आपदा आती है, अभी हम उससे हुए नुकसान की भरपाई तो दूर उसका ठीक से आकलन भी नहीं कर पाते, तब तक दूसरी आपदा आ जाती है। यह सिलसिला लगातार चला आ रहा है।



आपदा में अब तक हुए नुकसान का जायजा

- वर्ष 2001 : फाटा और ब्यूंग गाड़ भूस्खलन में 21 लोग मारे गए।

- वर्ष 2002 : बूढ़ाकेदार भू-स्खलन में 28 व्यक्तियों की मौत हुई।

- वर्ष 2003 : 18 अगस्त को भारत-नेपाल सीमा पर काली घाटी में भू-स्खलन के कारण 250 से अधिक की मौत। कैलाश मानसरोवर यात्रा के 12वें दल के अधिकांश सदस्यों की मृत्यु हुई, प्रसिद्ध नृत्यांगना प्रोतिमा बेदी मरने वालों में शामिल थीं।

- वर्ष 2005 : गोविंदघाट भू-स्खलन में 11 लोग मारे गए थे।

- वर्ष 2008: 17 जुलाई को पिथौरागढ़ में थल से दिल्ली जा रही बस में चंपावत जनपद में सूखीढांग के निकट आमरू बैंड (राष्ट्रीय राजमार्ग 125) पर भू-स्खलन से 17 लोगों की मौत हुई थी।

- वर्ष 2009 : पिथौरागढ़ की मुनस्यारी तहसील में ला-झेकला, चाचना व रूमीडाला में हुए भू-स्खलन के कारण 43 व्यक्तियों की मृत्यु हुई।

- वर्ष 2010 : में अल्मोड़ा शहर के नजदीक स्थित बाल्टा व देवली में भू-स्खलन के कारण 36 व्यक्तियों की मौत।

- वर्ष 2010 : बागेश्वर की कपकोट तहसील के अंतर्गत सुमगढ़ में प्राथमिक के भू-स्खलन के चपेट में आने से 18 विद्यार्थियों की मृत्यु।

- वर्ष 2010 : भूस्खलन के कारण रुद्रप्रयाग जनपद के किमाणा और गिरिया में 69 व्यक्तियों की मृत्यु।

- वर्ष 2012 : उत्तरकाशी जनपद में असीगंगा में भू-स्खलन के कारण रुके पानी के रिसाव से आई बाढ़ में 32 व्यक्तियों की मृत्यु।

- वर्ष 2013 : केदारनाथ सहित मंदाकिनी घाटी के कई शहरों व गांवों में भारी विनाश से आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक चार हजार से अधिक व्यक्ति मारे गए या लापता हुए थे, 14 व 15 अगस्त को पौड़ी गढ़वाल की यमकेश्वर तहसील के विभिन्न स्थानों पर भारी वर्षा के साथ हुए भूस्खलन में 14 व्यक्तियों की मृत्यु हुई थी।

- वर्ष 2016 : जनपद देहरादून में त्यूनी में हुए भू-स्खलन से 10 व्यक्तियों की मृत्यु हुई थी, पिथौरागढ़ जनपद की मुनस्यारी व बेरीनाग तहसीलों में बस्तड़ी, नौला रिंगोलिया, चर्मा व नाचनी में हुए भू-स्खलन के कारण 25 व्यक्तियों को मृत्यु हुई थी।

- वर्ष 2021 फरवरी में चमोली जिले में ग्लेश्यिर टूटने से धौलीगंगा-ऋषिगंगा में आई बाढ़ में दो सौ से अधिक लोगों की मौत हुई थी, ऋषिगंगा प्रोजेक्ट को बड़ा नुकसान हुआ था।

- वर्ष 2021 मानसून सीजन के खत्म होने के बाद अक्तूबर माह में तीन दिन भारी बारिश के बाद कुमाऊं में 80 के करीब लोग मारे गए थे।


समाचारों के लिए संपर्क करें=9897145867 संपादक शिवाकांत पाठक वी एस इन्डिया न्यूज चैनल दैनिक साप्ताहिक विचार सूचक समाचार पत्र

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