छल कपट की दोस्ती व व्यवहार का परिणाम!

 



स. संपादक शिवाकांत पाठक!





 निर्मल जल मन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा!!


भगवान राम ने कहा कि मुझे कपट, झूठ, छल पसंद नहीं है निर्मल जल की तरह साफ मन मुझे प्रिय है !



श्री राम चरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी महराज लिखते हैं लाभ, हानि, जीवन, मरण, जस अपजस, विधि हांथ ये छ: बातें विधि अर्थात कानून के अधीन हैं कुदरत के भी अपने कानून होते हैं जिस ईश्वर ने यह संसार बनाया है उसने इस संसार को सही तरीके से चलाने की व्यवस्था के अनुसार एक सिस्टम (तरीका) भी बनाया है  शास्त्रों, पुराणों के अनुसार जो भी प्राणी जैसा कर्म करे उसे वैसा ही फल प्रदान किया जाए यहां प्रमाण स्वरूप गोस्वामी तुलसीदास जी महराज राम चरित मानस में लिखते हैं कि , 


"जो जस करै सो तस फल चाखा, कर्म प्रधान विश्व रच राखा" !!



लेकिन हम खुद ही अपने आप को कलाकार बुद्धिमान समझ कर लिखी बातों को नजरंदाज करते हुए स्वार्थ सिद्ध होने तक वही कार्य करते हैं जो सच नहीं होते हम किसी भी वस्तु, व्यक्ति से लाभ, फायदे के लिए मिलते समय बड़ा मीठा व्यवहार करते हैं बाद में जब उस व्यक्ति से हमको लाभ मिल जाता है तो हम उसके साथ विपरीत व्यवहार करते हैं तब वह व्यक्ति समझ जाता है कि व्यवहार में अंतर है  और वह व्यक्ति भी उसे अपने द्वारा मिलने वाले लाभ को समाप्त करने के लिए सोचता है एक स्थिति वह आती है कि वह व्यक्ति दूर हो जाता है ,, तब स्वार्थी व्यक्ति को नुक्सान पहुंचने पर याद आता है कि मैंने गलत किया तब समय उसके हाथो से चुका होता है जैसे एक व्यक्ति ने बैंक से सहायता प्राप्त कर एक गोदाम बनवा दिया उस गोदाम को रेंट पर देने के लिए एक कम्पनी के मालिक को बड़ी मीठी मीठी बातें करके उसे गोदाम दे दिया कि आप गोदाम में जहां चाहो घूम सकते हो तमाम सुविधाएं बता दी लेकिन जब उसने गोदाम ले लिया तो कुछ दिन बाद व्यवहार में परिवर्तन आने लगा, उससे कहा जाने लगा कि आप यहां पर ना आएं आपका का सामान यहां नहीं रखा जा सकता  यह समान भले ही कीमती हो पर बाहर रखा जाएगा आ,यह चीज हमारे गोदाम के लिए अशुभ है आदि आदि ! इस मतलब परस्त व्यवहार को देख कर वह व्यक्ति सोचता है कि पहले तो यही व्यक्ति कह रहा था कि आप यहां पर बैठ सकते हैं यहां घूम सकते हैं अब क्या बात है मतलब यही है कि पास आने पर कीमत घट जाती है तब वह व्यक्ति गोदाम खाली कर चला जाता है , अब उस व्यक्त को अपने किए पर पछतावा होता है लेकिन समय जा चुका होता है इस तरह के मामले आप सभी के सामने आए होंगे जो कि मतलब के लिए दोस्ती का नाटक कर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं इसी तरह जब यह कहा जाता है कि जो जैसा करता है वैसा ही उसके साथ होता है तो,सबसे पहले जवाब दिया गया : बुरे कर्म करने वालो के साथ बुरा क्यों नही होता ? बुरे कर्म का फल उसे क्यों नही मिला इस बात पर परेशान होना ही अपने आप में अशांति का बहुत बड़ा कारण है । उसे सज़ा देना भगवान का काम है । जाने कब मिलेगी ये सोच सोच का हम ईर्ष्या से ग्रसित हो जाते है और अपना महत्वपूर्ण समय यही सोचने में गंवा देते हैं । दूसरों ने क्या किया , कितना गलत किया , क्या फल मिला ये सब नही सोचना है । बस अपना कर्म करना है । और कर्मफल पर तो हमारा अधिकार है नहीं । कर्म सिद्धान्त के नियम बहुत सूक्ष्म स्तर पर कार्य करते हैं । जिन्हें हम आम इंसान नही समझ सकते । कर्मों की काट होती है ये सच है । लेकिन कब किस कर्म से कोन से कर्म कटे या नष्ट हुए ये कोई ज्ञानी ही बता सकता है । कब किसको किस कर्म की सज़ा मिलनी है या कब अच्छे कर्मों का फल मिलना है सब प्रकृति निश्चित करती है । जो त्रिकालदर्शी हो वो ही ये सब जान सकता है बता सकता है । भक्ति या योग की गहराई में जाने पर हर सवाल का जबाब मिलेगा!

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