सोशल मीडिया की आड़ में दम तोड़ती वास्तविक पत्रकारिता!! संगीता सिंह (राष्ट्रीय अध्यक्षा पत्रकार योग कल्याण समिति)
प्रेस नोट प्राप्त होते ही एक ही समाचार सैकड़ों लोगों द्वारा सोसल मीडिया पर देखने को मिलता है,, जैसे अवैद्य शराब तस्कर गिरफ्तार, गाड़ी खाई में गिरी,, महिला ने लगाई फांसी,, ऐसी एक ख़बर को सैकड़ों लोगों द्वारा प्रसारित करना क्या देश या समाज के हित में होगा,, आज जनता की वास्तविक स्थिति क्या है ,,? किन परिस्थितियों के कारण सरकार की योजनाएं जनता तक नहीं पहुंच पातीं,, विकास कार्यों में वास्तव में क्या कमियां हैं ये सब एक वास्तविक पत्रकारिता से सम्बन्धित है,, साथ ही शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य के प्रति कहां पर कमी है जिसके चलते तमाम भयानक बीमारियों की चपेट में आकर प्रति वर्ष तमाम युवा मौत के शिकार हो जाते हैं,,, यह भी एक सफल पत्रकार के विवेक पर निर्भर है,, लेकिन विवेक होना भी तो जरूरी है,, प्रशासन इसलिए चुप है क्यों कि खबरें तो निकल ही रही है , जब भी खबरें प्रशासन को पसंद नहीं आतीं तो फिर प्रतिशोध के शिकार भी वही न जानकर अनुभव विहीन लोग होते हैं,, पत्रकारिता की शुरूआत देश और समाज को एक नई पहचान एवम दिशा प्रदान करने हेतु हुई थी,,पत्रकारिता आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय बन कर रह गई है, जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, लिखना, जानकारी एकत्रित करके पहुँचाना, सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं लेकिन ऐसा नहीं होता। आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे - अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता आदि शामिल हैं। बदलते वक्त के साथ बाजारवाद और पत्रकारिता के अन्तर्सम्बन्धों ने पत्रकारिता की विषय-वस्तु तथा प्रस्तुति शैली में व्यापक परिवर्तन किए जिसे झुठलाया नहीं जा सकता,,
वर्तमान में भारतीय पत्रकारिता सरकारी गजट या नोटिफ़िकेशन बनकर रह गई है मतलब सरकार के द्वारा दिए गए निर्देशों का अनुपालन ही सच्ची पत्रकारिता साबित हो रही है। लगभग सभी मिडिया संस्थान और चैनल दिन रात सरकार का गुणगान करते दिखाई दे रहे हैं। इक्कीसवीं सदी में दुनिया विज्ञान और टेक्नोलॉजी पर बात कर रही है परन्तु भारतीय मीडिया धर्म, जातिवाद, मन्दिर मस्जिद की तथाकथित राजनीति से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं क्यों,,? क्यों कि आज की पत्रकारिता जमीनी हकीकत से हट कर काम कर रही है,, ब्रिटिश शासन में सरकार की गलत नीतियों के विरोध में रात्रि में अखबार छाप कर घरों में पहुंचाने का कार्य पत्रकार या क्रांतिकारी करते थे,, क्यों कि पत्रकार वास्तव में एक क्रांतिकारी होता है जो कि जनता का सच्चा हितैसी होने के साथ साथ सरकार की जनहित योजनाओं को जन जन तक पहुंचाने का कार्य करता है,, लिकिन आज की पत्रकारिता भारतीय समाज में अन्धविश्वास, धार्मिक उन्माद, सामाजिक विघटन ही पैदा कर रही है। वर्तमान समय में मिडिया की नजरों में सेक्युलर, उदारवादी या संविधानवादी होना स्वयं में एक गाली हो गया है।
पण्डित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, सुभाष चन्द्र बोस ओर मोलाना आजाद के सपनों का भारत वाकई में बहुत खुबसूरत ओर खुशहाल हैं ओर इस भारत को हम इस तरह से अन्धविश्वास, तथाकथित धार्मिक उन्माद और जड़ता की ओर नहीं जाने देगे।
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