ईश्वर के लिए भक्त का समर्पण,,,,,

 




तुम नहीं दिखते मगर सचमुच में तुम भगवान हो,,!



सिर्फ मेरा ही नहीं तुम देश का अभिमान हो!!


कृष्ण तुम और राम तुम हो सत्य शिव भी आप हैं!


हम सभी पापी हैं लेकिन आप ही निष्पाप हैं!!


ज्ञानियों के ज्ञान तुम हो श्रष्टि संचालक तुम्ही!


 ध्यान है तुमको सभी का विष्व के पालक तुम्ही!!


प्रेम से तुम प्रकट होते प्रेम की पहचान हो,,,


तुम नहीं दिखते मगर सचमुच में तुम भगवान हो,,!


अब यहां पाखंड का ध्वज हर जगह लहरा रहा,,!


सत्य सांसे गिन रहा है धैर्य खोता जा रहा !!


कुछ नहीं मानव के वश में हां मगर अज्ञान है!


उसको अपने आप में ही व्यर्थ का अभिमान है!!


हैं सभी मिट्टी के पुतले तुम ही सबकी जान हो,,,,


तुम नहीं दिखते मगर सचमुच में तुम भगवान हो,,!


जीवन की सार्थकता को दर्शाने हेतु एक प्रयास 


स्वरचित मौलिक रचना 



स.संपादक शिवाकांत पाठक 

हरिद्वार उत्तराखंड 

संपर्क सूत्र 📞 9897145867

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