नारी की अंतर्व्यथा पर आधारित कविता!
हो पूर्ण सुरक्षा नारी की वह धर्म मुझे बतला देना!
तुम खुद भी तो मां कहते हो दुनियां से मुझको क्या लेना!!
ना उठे कभी उंगली मुझ पर बतलाओ क्या करना होगा!
या जिसको चलना सिखलाया उनके हाथों मरना होगा!!
बेखौफ उठा सर चलूं जहां वह गली मुहल्ला बतलाओ!
इज्जत की नजरों से देखे , तुम वह समाज तो दिखलाओ!!
कब तक नोचोगे तन मेरा बस मुझको यह समझा देना!
तुम खुद भी तो मां कहते हो दुनियां से मुझको क्या लेना!!
🙏श्रष्टि के रचना में अहम भूमिका निभाने वाली विष्व की प्रत्येक नारी की व्यथा पर समर्पित कड़वी किंतु सत्य रचना 🙏
स्वरचित मौलिक रचना
स.संपादक शिवाकांत पाठक
हरिद्वार उत्तराखंड
संपर्क सूत्र 📲 9897145867
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