_क्यों सड़ रहा है व्यक्ति और उसका समाज ? ज कि यह क्या है ? चौधरी मण्डल ब्यूरो चीफ! वी एस इन्डिया न्यूज!

 



    _*आपके लिए असंभव है :* प्रेमपात्र (इन्सान, पशु, पक्षी कोई भी हो वो) का ख्याल रखना, उसे खिलाना, उसे पालना, उसे खुश-तृप्त रखना : चाहे बदले में आपको कुछ भी ना मिले। भले वह आप के पीछे-पीछे न चले, आपको कोई सहारा ना दे, आपका आश्रित बनकर न रहे। वो इन्सान है तो जिसके साथ जब आनंदित होना चाहे, आनंदित हो --आप दें उसे पूरी स्वतंत्रता।_

    हम चाहते हैं कि कोई हमें प्यार करे, मगर हम किसी को प्रेम कर उसे तृप्त करना नहीं, बस वसूलना चाहते हैं।


       _*स्वतंत्रता और प्रेम दोनों साथ चलते हैं।* प्रेम प्रतिक्रिया/प्रतिदान/बंधन/गुलामी नहीं है।यदि मैं आपसे इसलिए प्रेम करता हूं कि आप मुझसे प्रेम करते हैं तब यह एक व्यापार होगा। यह एक बाजारू वस्तु हो जाएगी जिसे खरीदा- बेचा जा सकता है। यह प्रेम नहीं है।_

       *प्रेम करने का अर्थ है* : हम जिसे चाहें, उससे कुछ भी न चाहे। हमें इस बात का विचार तक न रहे कि हमने कुछ दिया भी है। केवल ऐसा ही प्रेम जान सकता है कि स्वतंत्रता क्या होती है। 


       आप इसके लिए खुद द्वारा शिक्षित नहीं किए जाते। आपमें महत्वाकांक्षा है, प्रतिस्पर्धा है, लेने-भोगने की हवस है; प्रेम बिल्कुल है ही नहीं। 

     _यही कारण है कि व्यक्ति और उसका समाज निरंतर सड़ता जा रहा है। राजनीतिज्ञ, न्यायधीश, बाबा-महाराज और तथाकथित प्रतिष्ठित लोग शांति की बातें करते रहें : इनका कोई अर्थ नहीं है।_

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