कैसे भुलाओगे अतीत को गुजरा वक्त याद आयेगा! हरिद्वार! स संपादक शिवाकांत पाठक!




 बीते वर्ष की यादों के लम्हे याद तो आते ही हैं  भले ही बीता वर्ष 2020  अतीत को अपने आगोश में समेट कर ले गया हो लेकिन अतीत की यादें अंतर्मन में हमेशा गूंजती रहतीं हैं तभी कहते हैं कि इतिहास अमिट यानी भुलाया नहीं जा सकता चाहें वे बचपन के दिनों की यादें हों या फिर जो समय गुजर गया 





,,,अब हम तीर्थ नगरी हरिद्वार की बात करते हैं जिसमें बीते वर्ष कोरोना महा संकट के दौर में एक ओर पुलिस विभाग ने यह दिखा दिया कि इंसानियत अभी जिंदा है जिसमें  मुख्य रूप एस एस पी हरिद्वार के कुशल नेतृत्व में पुलिस विभाग के साहसी निर्भीक व मानवता वादी जिम्मेदार अधिकारियों ने मुख्य रूप से सी. ओ सदर., सी.ओ सिटी,  व कमल मोहन भंडारी जिन्हें इंस्पेक्टर की उपाधि प्रदान की गई, प्रशांत बहुगुणा , 


एल एस बुटोला,


दिलबर कण्डारी, रानीपुर कोतवाल, ज्वालापुर कोतवाल एस पी सिटी आदि के महत्वपूर्ण योगदान को भुलाया नहीं जा सकता ,,इसी क्रम में जिला प्रशासन में मुख्य रूप से  जिला अधिकारी  सी रविशंकर प्रसाद जी


 जिन्होंने सम्पूर्ण जिम्मेदारी को बखूबी निभाया, अपर जिलाधिकारी के . के मिश्रा



 जिन्होंने 36 घंटे जाग जाग कर जिलाधिकारी हरिद्वार के निर्देशन में जनपद में समुचित रूप से भोजन, स्वास्थ्य, प्रवासियों की व्यवस्था को अंजाम दिया


 कैसे भुलाओगे इन इंसानियत के पुजारियों को एस. डी. एम , तहसीलदार आशीष  घिड़ियाल 


तथा स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने भी पूर्ण रूप से समर्पण की भावना से जो अहम भूमिका निभाई उसे कैसे भूल सकती है जनपद हरिद्वार की जनता  तमाम वास्तविक राष्ट्र व जन सेवा से जुड़े चैनलों समाचार पत्रों  के विशेष पदाधिकारियों जैसे स. संपादक शिवाकांत पाठक 



एंकर गुलफाम अली,  


द्वारा मानवता के इन पुजारियों को सम्मानित भी किया गया  




आपने  सुना होगा पढ़ा होगा सुख के सब साथी दुख में ना कोय ,, लेकिन जो कष्टों में काम आए वही तो ईश्वर का स्वरूप होता है लेकिन यह सब हमारी सोच पर निर्भर करता है कि जिसने भी वक्त पर साथ दिया उसके प्रति हमारा क्या दायित्व बनता है यह दुनियां तमाम रहस्यों से जुड़ी हैं जब शेर को गुरूर होता है कि मुझसे ज्यादा ताकतवर कोई नहीं तभी उसे जंगल का छोटा सा जानवर  उसे अहसास दिला देता है वहीं ईश्वर की कृपा से ईश्वर के करीबी लोग अधिकारी या सामाजिक सभी जनता की मदद करने लगते हैं लेकिन जो मदद करने वालों को भूल जाते हैं उन्हें सामाजिक रूप से अहसान फरामोश कहते हैं व उनके जीवन में दुखों की पुनरावृत्ति होती है सब कुछ होकर भी वे खुद को अधूरा महसूस करते हैं तो क्या आप ने भी भुला दिया वक्त पर काम आने वालों को ????

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