ऐतिहासिक यादगार,,,,कोरोना काल में भारतीय पुरुषो ने दिया अदम्य साहस का परिचय। लेख।
स.संपादक शिवाकांत पाठक।
छोटी छोटी आखों वाले देश चीन में अवतरित होने वाली कोरोना महाभयानक बीमारी ने सम्पूर्ण विश्व को झझकोर कर रख दिया,, महा शक्ति कहलाने वाले अमेरिका ने भी इस बीमारी के सामने घुटने टेक दिए,, यह छोटी आखों वाले कर सकते हैं यह विश्वास नहीं हो रहा था,, वास्तव में हम कभी कभी किसी को भी छोटा समझ कर इग्नोर करने की भूल कर बैठते हैं जिसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ता है,, लेकिन यह मानव जाति की परम्परा है कि वह गलती स्वीकार नहीं करेंगे ना कभी भी की है,,
अब बात करते है अपनें देश की जिस मिट्टी में हमने जन्म लिया है,, भारत में हर परिवार में नारियों का वर्चस्व कायम रहा है,, और इसीलिए पुरुष ज्यादातर घर से दूरी बनाए रखने में ख़ुद को सुरक्षित महसूस करते हैं,, लेकिन रविवार का दिन पुरुषों के लिए बेहद डरावना साबित होता है क्यों कि उस दिन सभी पुरुषों को ना चाहते हुए भी कुरु क्षेत्र में धृतराष्ट्र बनना पड़ता है,, यानि कि आंखे बंद करके आत्म समर्पण करना उनकी मजबूरी बन जाती है,, ऐसे में कोरोना नामक बीमारी ने भारतीय पुरुषों को महा भयानक परिस्थिति का सामना करने हेतु मजबूर कर दिया,, कहावत है कि आगे कुआं पीछे खाई,, मौत दोनो ओर मुंह फ़ैला कर खड़ी थी,, घर में रण चंडी खप्पर लिए युद्ध का बिगुल फूंक रहीं थीं,,तो वहीं दूसरी ओर कोरोना में विशेष महत्वपूर्ण योगदान देने वाली पुलिस हर गली मोहल्ले चौराहों पर लाठी लिऐ मेरे मेरे महबूब तुझे सलाम करने के लिए मुस्तैद थी , उनकी भी तो मजबूरी थी कोरोना से बचाने हेतु उन्हे कहा गया था और भारतीय लोग प्यार की भाषा कम समझते हैं,,,,बलि का बकरा तो अब बनने के अलावा भारतीय पुरूष के सामने कोइ भी रास्ता नहीं था,, साथ ही घर में रहकर हां हुजूरी से भी बात नही बनी क्यों कि नारी और पुरूष की जंग सदियों पुरानी है,, पुरूष उस कोरोना काल में ख़ुद को पिजड़े में कैद तोता समझ रहा था,, लेकिन जब ग्रह मंत्रालय का यह निर्देष होता था कि आज हर कीमत पर पकौड़े बनने हैं तो फिर जान हथेली पर लेकर पति देवता को घर से बाहर निकलना ही पड़ता था और बेसन के साथ ही सूजी लाना उनकी मजबूरी बन चुकी थी,, कितना खतरनाक साबित हुआ भारतीय पुरुषो के लिए कोरोना,,,,?
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