जानिए,,दान को महान पुण्य कर्म क्यों कहा गया है,,? विश्व विख्यात, महंत अमृता नंद गिरि महराज (बाबा बर्फानी बद्रीनाथ धाम )



स.संपादक शिवाकांत पाठक!









एक भेंट के दौरान बाबा बर्फानी बद्रीनाथ धाम ने कहा कि,,,दान करने से मिलती है मोह से मुक्ति, होते हैं कष्ट दूर,,,,, साथ ही उन्होने कहा कि हरिद्वार में संस्था का सहयोग करने वाले शिष्यों को भी विशेष रूप से मेरा आशिर्वाद व सानिध्य शीघ्र प्राप्त होगा,,,

बाबा बर्फानी ने कहा कि गरीब लोगों को भोजन, अनाथ कन्यायों की शिक्षा एवम शादी,, असहाय विकलांग बच्चों व लोगों की हर संभव मदद करना हमारी ट्रस्ट का प्रमुख उद्देश्य है,,



हर धर्म में दान का खासा महत्व माना गया है. दान देने से जहां मोह से मुक्ति मिलती है वहीं जीवन के दोष भी दूर होते हैं




अन्नदान, वस्त्रदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान, ये सारे दान इंसान को पुण्य का भागी बनाते हैं. किसी भी वस्तु का दान करने से मन को सांसारिक आसक्ति यानी मोह से छुटकारा मिलता है. हर तरह के लगाव और भाव को छोड़ने की शुरुआत दान और क्षमा से ही होती है.


श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है कि परहित के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को कष्ट देने के समान कोई पाप नहीं है. साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी महराज यह भी लिखते हैं कि,,



दान के विषय में श्रीरामचरितमानस ने कहा-


प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान । जेन के बिधि दिनें दान करि कल्यान ॥ 103


ख ॥


- श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड


अर्थात् :- धर्म के चार चरण (सत्य, दया, तप और दान) प्रसिद्ध हैं, जिनमें से कलि में एक (दान रूपी) चरण ही प्रधान है। जिस किसी प्रकार से भी दिए जाने पर दान कल्याण ही करता है।


बाबा बर्फानी ने कहा कि,, हमारे ट्रस्ट द्वारा,, बेजुबान जानवरो,, जैसे गाय, कुत्ता, बंदरों आदि,, पक्षियों, अति सूक्ष्म जीव चिटियों को भी निरंतर भोजन ,, पानी की व्यवस्था की जाती है,, साथ ही बेसहारा, असहाय वृद्ध माता पिता जिन्हे कलियुगी पुत्रों द्वारा संरक्षण प्राप्त नहीं होता उन सभी के लिए संस्था द्वारा रहने एवम् भोजन, सेवा आदि का प्रबंध किया जा रहा है प्रत्येक प्रदेश में ट्रस्ट द्वारा व्रधाश्रम बनवाने हेतु प्रयास किया जा रहा है,,


दान एक ऐसा कार्य है, जिसके जरिए हम न केवल धर्म का ठीक-ठीक पालन कर पाते हैं बल्कि अपने जीवन की तमाम समस्याओं से भी निकल सकते हैं. आयु, रक्षा और सेहत के लिए तो दान को अचूक माना जाता है. जीवन की तमाम समस्याओं से निजात पाने के लिए भी दान का विशेष महत्व है. दान करने से ग्रहों की पीड़ा से भी मुक्ति पाना आसान हो जाता है.



करता, इस विषय में गरुडपुराण में कहा गया।


अदत्तदानाच्च भवेद्दिद्रो दरिद्रभावाच्च करोतिपापम्। पापप्रभावान्नरकं प्रयाति पुनर्दरिद्रः पुनरेव पापी ॥ 46॥ - गरुडपुराण प्रेतकाण्ड अध्याय 24


अर्थात् :- दान ने प्रदान से प्राणी दरिद्र होता है । दरिद्र हो जाने पर फिर पाप करता है। पाप के प्रभाव से नरक में जाता है और नरक से लौटकर दरिद्र और फिर से पापी होता है।


यानी जो दान नहीं करते, वो दरिद्र होते है। पेट के लिए वो पाप करते है। पाप करने से नरक जाते है। फिर नरक से लोटकर पुनः वे दरिद्र होते है। इस प्रकार दरिद्र बनने का क्रम चलता जाता है। अतः थोड़ा ही, परन्तु दान करना चाहिए।


ज्योतिष के जानकारों की मानें तो अलग -अलग वस्तुओं के दान से अलग-अलग समस्याएं दूर होती हैं, लेकिन बिना सोचे-समझे गलत दान से आपका नुकसान भी हो सकता है. कई बार गलत दान से अच्छे ग्रह भी बुरे परिणाम दे सकते हैं. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो वेदों में भी लिखा है कि सैकड़ों हाथों से कमाना चाहिए और हजार हाथों वाला होकर दान करना चाहिए !

गुरु जी की सेवा में समर्पित


वी एस इन्डिया न्यूज परिवार हरिद्वार उत्तराखंड


सम्पर्क सूत्र,,,9897145867 व्हाट्स ऐप नम्बर,,,

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