जहां इंशानियत अक्सर हमेशा हार जाती है!
जहां इंशानियत अक्सर हमेशा हार जाती है!
जहां अपने ही मुंह मोड़ें वहां आंसू बहाती है!!
बड़े विश्वास से दिल मैंने सबका जीतना चाहा!
मगर परिणाम कहने में मुझे भी शर्म आती है!!
जहां इंशानियत अक्सर हमेशा हार जाती है!
मैं इक इन्सान हूं इंशनियत से प्यार करता हूं!
दुखे न दिल किसी इन्सान का हर पल मैं डरता हूं!!
नहीं है गम मुझे इस बात का तुमने न पहिचाना!
सदा ही आदमियत आदमी को आजमाती है,,,
जहां इंशानियत अक्सर हमेशा हार जाती है!
दीपक नौटियाल समाज सेवी
चेयरमैन प्रतिनिधि
नवोदय नगर हरिद्वार उत्तराखंड
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