यात्रा, अब हम ना जायेगे पहाड़ों पे,,,
दरकते पहाड़ों को,
गिरते मलबों को,
जब देखा अपनी आंखों से।
सांसे थम सी गईं,
यात्रा दुखदाई हो गई
बहने लगे आंसू इन आखों से !
टूटी सड़के, गहरे खड्डे,
ऊपर से गिरता पानी।
देख कर ऐसा लगा
अब तो खतम हो गई कहानी।
और कोई राह नजर नहीं आई,,
ऊपर अंबर नीचे खाई।
बीच में हम सब की
जान फंसी थी भाई।
क्या बताऊं मैं
वो मंजर कैसा था।
जो अपनी आंखो से
मैने उस वक्त देखा था।
शुक्र था बस इस बात का
हम ही नही अकेले थे।
साथ हमारे लोग बहुत थे
जिन्होंने निरंतर कष्ट झेले थे।
ना जाने कब आ जाएं
हम मौत के मुहाने पे।
तीन दिन गाड़ी में बीता
फसें रहे पहाड़ों पे।
संपर्क सबसे टूट गया
हाल बताएं हम किसको।
किस विपदा में पड़े हुए हैं
कैसे बताएं हम अपनो को।
बच्चे मेरा मुख देखे
मैं देखूं पतिदेव को।
एक दूजे को ढांढस बंधाए,,
सब मिल चलेंगे अपने घर को।
मुश्किल की उस घड़ी में
सेना देवदूत बन कर आई।
सकुशल उस विपदा से
बाहर हम सब को लाई।
पहली बार असहाय होते
हमने खुद को देखा था।
बच के आ गए हम उस विपदा से
शुक्रिया है उस रब को।
मौलिक/ बंदना मिश्रा
देवरिया, उत्तर
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